ग़ज़ल :- चार पैसा उसे हुआ क्या है
चार पैसा उसे हुआ क्या है
पूछता फिर रहा खुदा क्या है |
हर जगह तो यही करप्शन है
रोग बढ़ता गया दवा क्या है |
तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब
पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |
तेरे जाने पर अब ये जाना माँ
बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |
हम मलंगों से पूछकर देखो
सच के व्यापार में नफा क्या है |
और बढ़ जाती है व्यथा मेरी
जब कोई पूछता कथा क्या है |
वक्त रुकता कहाँ किसी के लिये
दुश्मनी ही सही जता क्या है |
ज़िंदगी मौत का साया है तू
साथ जितना भी है निभा क्या है |
अब तो मंदिर भी लूटे जाते हैं
याचना से यहाँ मिला क्या है |
Comment
तुम ही रक्खो ये नारे वादे सब
पांच वर्षों का झुनझुना क्या है |
तेरे जाने पर अब ये जाना माँ
बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |
'अभिनव' सर सच में आपको पढ़ कर मजा आ जाता है| आप की लगभग सारी कृतियाँ जो यहाँ पोस्ट होती है मै पढता हूँ| ये ग़ज़ल भी बहुत पसंद आई मुझे|
तेरे जाने पर अब ये जाना माँ
बद्दुआ क्या है और दुआ क्या है |/
हम मलंगों से पूछकर देखो
सच के व्यापार में नफा क्या है |/
main aapki ghazalon ka niymit paathak hoon. haan, kuchh vyastataayein rahti hain, jinke kaaran comments rah jaate hain. sach kaein, aapko padhne ka hamesha apna alag hi anubhav hota hai. hamesha ki hi tarah ek umda ghazal. upar ke dono sher dil ke kareeb maaloom hue. haardik badhai.
Arun ji...bahut hi shandaar gazal...saare sher lajawab hain..bahut bahut badhai...
भाई मोईन जी आपकी सलाह पर ये दो शेर आप्कने नाम -
'हुई मुद्दत ये जान पाया नहीं
नाम क्या है मेरा पता क्या है |
सोचता हूँ खुदा कहूँगा क्या
जब तू पूछेगा कि रजा क्या है |'
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