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एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!

एक ग़ज़ल - चाँद सूरज गुलाब रक्खा है !!
(२१२२ १२१२ २२/११२)

चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||

सिसकियों में कटी जो रात उसका
कागज़ों पर हिसाब रक्खा है ||

शामियाना तेरी मुहब्बत का
एक ऐसा भी ख़्वाब रक्खा है ||

लफ़्ज करते नहीं शिकायत क्या
खामुशी का नकाब रक्खा है ||

याद करना तुम्हें ख़ुदा की तरह
आदतों को ख़राब रक्खा है ||

ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने
और तुमने शबाब रक्खा है ||

सींचना चाहता हूँ रिश्तों को
खुद को प्यासा, जनाब रक्खा है ||

-- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 978

Comment

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Comment by hemant sharma on October 6, 2013 at 12:48am

बहुत हि सुन्दर गजल आ. आशीष जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 11:54pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 5, 2013 at 11:51pm

लफ़्ज करते नहीं शिकायत क्या
खामुशी का नकाब रक्खा है ||....यह शेर बहुत पसंद आया

बेहद खुबसूरत गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय आशीष जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 11:50pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ सर !  :))))
ज. राहत इन्दौरी तो अद्भुत हैं !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 11:44pm

हौसलाअफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आदरणीया कल्पना रामानी जी,  आदरणीया annapurna bajpai जी,  आदरणीय ajay sharma जी !!  :))))


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 5, 2013 at 11:37pm

बहुत सुन्दर ! वाह वाह

सही कहूँ,  राहत साहब याद आगये ! ...

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 11:22pm

आपके ये शब्द भी कीमती है भाई  डॉ. अनुराग सैनी जी !
तहेदिल से शुक्रिया....

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 11:19pm

तहेदिल से शुक्रिया भाई Shijju Shakoor जी !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 11:14pm

हौसलाअफजाई के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया गीतिका 'वेदिका' जी !

Comment by ajay sharma on October 5, 2013 at 11:05pm

चाँद सूरज गुलाब रक्खा है |
ख़त में ख़त का जवाब रक्खा है ||           shandar mat-ala kaha hai  

सिसकियों में कटी जो रात उसका 
कागज़ों पर हिसाब रक्खा है ||       wah wah wah 

ओढ़ रक्खी हैं झुर्रियाँ मैंने

और तुमने शबाब रक्खा है ||          kya baat hai kya khayal sameta hai 

सींचना चाहता हूँ रिश्तों को 
खुद को प्यासा, जनाब रक्खा है ||       bahut khoob 

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