दुर्मिल सवैया
पुरबी उर-*उंचन खोल गई, खुट खाट खड़ी मन खिन्न हुआ |
कुछ मत्कुण मच्छर काट रहे तन रेंगत जूँ इक कान छुआ |
भडकावत रेंग गया जब ये दिल मांगत मोर सदैव मुआ |
फिर नारि सुलोचन ब्याह लियो शुभचिंतक मांगत किन्तु दुआ |
उंचन=खटिया कसने वाली रस्सी , उरदावन
मत्कुण=खटमल
अप्रकाशित / मौलिक
Comment
वाह !!! आदरणीय रविकर जी इस सुंदर हास्य युक्त दुर्मिल सवैया हेतु बहुत बधाई आपको ।
आदरणीय रविकर जी , अति सुन्दर सवैया की रचना की आपने, हास्य मिश्रित भाव में ! बहुत बधाई !!
हाहाहा वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर हास्यप्रद सवैया क्या कहने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
शादी के लड्डू खाकर पछताने वाले समझदार कहलाते है । सवैया की बधाई रविकर भाई ।
खूबसूरत सवैया बन पड़ा है आदरणीय रविकर जी.... बधाई हो....
बहुत सुन्दर मन को गुदगुदाने में सफल रचना आदरणीय श्री रविकर जी ..हार्दिक हार्दिक बधाई !
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