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!!! सारांश !!!
बह्र - 2 2 2


कर्म जले।
आंख मले।।


धर्म कहां?
पाप पले।


नर्म गजल,
कण्ठ फले।


राह तेरी ,
रोज छले।


हिम्मत को,
दाद भले।


गर्म हवा,
नीम तले।


जीवन क्या?
हाड़ गले।

आफत में,
बह्र खले।


प्रीत करों,
बन पगले।


विव्हल मन,
शब्द टले।


दृषिट मिली,
सांझ ढले।


गर मुफलिस,
बात टले।

कण्टक पथ,
सत्य फले।

दुष्ट यहां,
हाथ मले।


के0पी0सत्यम / मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 16, 2013 at 7:00pm

आदरणीय आशुतोष भार्इ जी,   आपके स्नेह एवं उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 16, 2013 at 6:58pm

आदरणीया मंजरी जी,   आपके स्नेह एवं उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 16, 2013 at 6:44pm

आदरणीय जितेन्द्र भार्इ जी,   आपके स्नेह व उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 16, 2013 at 6:40pm

आदरणीय वीनस भार्इ जी,  सादर प्रणाम!  आपका प्रबल समर्थन और उत्साह पाकर हृदय प्रफुलिलत हो गया। आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by Meena Pathak on October 13, 2013 at 7:46pm

बहुत सुन्दर .. बधाई स्वीकारें 

Comment by बृजेश नीरज on October 13, 2013 at 6:22pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 4:31pm

कमाल के ग़ज़ल ..हार्दिक बधाई केवल जी ...

Comment by mrs manjari pandey on October 13, 2013 at 3:51pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी अच्छी रचना के लिए बधाई , शुभकामनायें !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2013 at 10:59am

वाह!   बहुत अद्भुत रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल जी

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 1:49am

ऐसी रचनाओं का सदैव स्वागत होना चाहिए जिसमें प्रयोगधर्मिता को मान दिया गया हो क्योकि प्रयोगधर्मिता ही हमको नया कलेवर बख्शती है ...
आदरणीय
ग़ज़ल के इस सफल प्रयोग के लिए आप साधुवाद के पात्र है ....

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