For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना लगा (हास्य ग़ज़ल "राज")

१२२२     १२२२      १२२२ १२

बहर---हजज मुसम्मन महजूफ

काफिया ---ना

रदीफ़ ----लगा

सुनाया दर्द जो तूने बुरा इतना   लगा

तेरे इस दर्द के आगे मेरा अदना लगा

 

मिली धोबिन मुझे कल राह में पहने हुए

दुपट्टा पास से देखा मुझे अपना लगा

चुराई पैर की पायल मुझे  कुछ गम नहीं   

बड़े सम्मान से उसका मुझे झुकना लगा

 

चिढ़ाने के लिए  वो दे रहा था गालियाँ

मुझे तो राम का ही नाम सा जपना लगा

 

निकाला जेब से बटुवा किसी ने राह में  

बुरा फिर भीड़ से उसका मुझे पिटना लगा

 

गिराया टांग से मुझको किसी ने दौड़ में

 मुझे वो ख़्वाब मैं या नींद में गिरना लगा

 

दिया धोखा किसी ने राह मैं मुझको कभी

फ़कत दिन चार का मुझको बुरा सपना लगा

 

करूं क्या है बुरी पर ये मिरी आदत सही

भला हर ख़ार का मुझको सदा चुभना लगा   

 

छुपाना “राज” ये मुमकिन नहीं लगता मुझे

सुनाने से कहीं अच्छा मुझे लिखना लगा

************************************

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

Views: 970

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 8:53am

जितेन्द्र गीत जी ग़ज़ल के शेर आपको हास्य रस में भिगो सके ये लेखन की सार्थकता हुई ,दिल से आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 15, 2013 at 8:51am

प्रिय सविता जी आपको ग़ज़ल पसंद आयी तहे दिल से शुक्रिया ,सस्नेह 

Comment by vandana on October 15, 2013 at 7:06am

चुराई पैर की पायल मुझे  कुछ गम नहीं   

बड़े सम्मान से उसका मुझे झुकना लगा

वाह मैम बढ़िया हज़ल लिखी आपने .....सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदर्शित कर रही है रचना 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:45am

निकाला जेब से बटुवा किसी ने राह में  

बुरा फिर भीड़ से उसका मुझे पिटना लगा............ वाह........ यही तो है बड़प्पन....

चिढ़ाने के लिए  वो दे रहा था गालियाँ

मुझे तो राम का ही नाम सा जपना लगा..... वाह वाह.... इसे कहते हैं सोच....... जैसी आप स्वयं सोच रखेंगे, वैसी ही दूसरे की बातें आपको लगेंगी.....

छुपाना “राज” ये मुमकिन नहीं लगता मुझे

सुनाने से कहीं अच्छा मुझे लिखना लगा...... गज़ल का मक्ता भी बेहद खूबसूरत..... क्या बात है आदरणीया राजेश कुमारी जी..... बधाई हो आपको..... सभी शेर एक से एक ज़बर्दस्त.....

Comment by वेदिका on October 14, 2013 at 11:20pm

बहुत मजेदार गज़ल हुयी!

मिली धोबिन मुझे कल राह में पहने हुए

दुपट्टा पास से देखा मुझे अपना लगा.................. अपनी चीज से दूर हो जाने पर या किसी के द्वारा अपना लिए जाने पर भी उससे अपनत्व की गंध नहीं जाती|

छुपाना “राज” ये मुमकिन नहीं लगता मुझे

सुनाने से कहीं अच्छा मुझे लिखना लगा......................गज़ल का सशक्त शेअर हुआ है| गज़ल की खूबसूरती पर चार चाँद लगा दिये|

बधाई आ0 राजेश दीदी! 

Comment by MAHIMA SHREE on October 14, 2013 at 10:25pm

चुराई पैर की पायल मुझे  कुछ गम नहीं   

बड़े सम्मान से उसका मुझे झुकना लगा

 

निकाला जेब से बटुवा किसी ने राह में  

बुरा फिर भीड़ से उसका मुझे पिटना लगा

 

 वाह  वाह आदरणीया   राजेश दी बड़ी ही मासूमियत से लिखी गयी गज़ल.. बेहद उम्दा ख्यालात .. हार्दिक बधाई आपको

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 14, 2013 at 9:47pm

आदरणीया राजेश जी ..बेहद उम्दा इस ग़ज़ल का ये शेर 

निकाला जेब से बटुवा किसी ने राह में  

बुरा फिर भीड़ से उसका मुझे पिटना लगा

 मुझे बेहद पसंद आया ..शायर और कवी वाकई कितना सहृदय होते हैं ..आपको इस रचना पर हार्दिक बधाई के साथ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2013 at 8:41pm

मिली धोबिन मुझे कल राह में पहने हुए

दुपट्टा पास से देखा मुझे अपना लगा.........हा हा हा..यह तो पिटवाने वाला शेर है

एक से बढकर, एक हास्यप्रद शेर, दिली दाद कुबूल कीजियेगा आदरणीया राजेश जी

Comment by Savitri Rathore on October 14, 2013 at 8:41pm

आदरणीया राजेश जी ......कमाल की ग़ज़ल लिखी है।हर शेर काबिल-ए -तारीफ़ है ......और खास तौर से ये शेर .....इसे मैं अपने जीवन में आत्मसात करना चाहूँगी।
छुपाना “राज” ये मुमकिन नहीं लगता मुझे

सुनाने से कहीं अच्छा मुझे लिखना लगा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 14, 2013 at 7:42pm

अभिनव् अरुण जी आपको ग़ज़ल पसंद आई ,ये ग़ज़ल धन्य हुई बहुत बहुत शुक्रिया 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service