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लघुकथा : गिफ्ट (गणेश जी बागी)

साफ साफ बताओं, आख़िर बात क्या है ? जबसे तुम अपनी छोटी बहन की शादी से लौटी हो, तुम्हारा मूड उखड़ा उखड़ा है और ढंग से बात भी नही कर रही हो, प्रकाश नें अपनी पत्नी नीतू से पूछा | 
"कुछ नही बस यूँ ही" 
"देखो 'बस यूँ ही' कहने से काम नही चलने वाला, तुम्हे मेरी कसम, सच सच बताओं हुआ क्या ?"

"प्रकाश आपने मेरी बहन की शादी मे जो अँगूठी गिफ्ट की थी न, वह किसी को पसंद नही आयी, भाभी और माँ ने आपका खूब मज़ाक उड़ाया, वो लोग कह रही थीं कि यह घटिया अँगूठी कहाँ से खरीदी है, एक तो बेहद हल्की है और डिजाइन भी देहाती टाइप, चेहरा लटकाए नीतू एक साथ बोल गयी | 

"हूउउउ तो यह बात है, अरे भाई तुम्हे तो पता ही है आजकल पैसे की दिक्कत चल रही है इसलिए अँगूठी खरीदी कहाँ, शादी में तुम्हारी माँ ने जो अँगूठी मुझे दी थी वो नई ही पड़ी थी उसी को साफ करवा कर गिफ्ट कर दिया था |

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 5:21am

हा..हा..हा..... यह भी खूब रही...... क्या खूब पंच मारा है आदरणीय गणेश बागी जी...... कहीं निजी अनुभव तो नहीं... हा..हा..हा..... कृपया अन्यथा न लीजिएगा....... दिल से बधाई इस सुंदर व्यंग्यात्मक लघु कथा के लिए.....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 11:13pm

आदरणीया गीतिका जी, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 11:12pm

सराहना हेतु दिल से आभार आदरणीय बृजेश भाई जी । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 11:11pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी भाई साहब, आपका आशीर्वाद लेखन में सहायक है, ह्रदय से आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 14, 2013 at 11:10pm

प्रिय अरुन, आपकी टिप्पणी सदैव श्रेष्ठ लेखन हेतु प्रेरित करती है,बहुत बहुत आभार । 

Comment by MAHIMA SHREE on October 14, 2013 at 10:18pm

हा हा .. मजा आ गया बहुत खूब ..आदरणीय बागी जी .. वैसे बहुत ही सुंदर तरीके से आपने दिखावटी रिश्ते की पोल खोली ... रिश्तेदारों में ये घटनाएँ तो  आम सी हैं ..हार्दिक बधाई

Comment by Abhinav Arun on October 14, 2013 at 7:13pm

आज के लेन देन के कल्चर पर करार प्रहार करती रचना आदरणीय श्री बागी जी हार्दिक बधाई आपको इस सशक्त लघुकथा हेतु !

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 14, 2013 at 4:38pm

वाह..वाह, क्या बढ़िया तरीके से बात कही |  
बढ़िया कहानी आदरणीय गणेश जी !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 14, 2013 at 3:30pm

वाह! बहुत खूब, जोर का झटका, धीरे से...हा हा हा

महंगाई के ज़माने में, बढ़ते खर्चो में,जेब पर कम भारी पड़ती हुयी, लघुकथा पर, बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय गणेश जी

Comment by रामनाथ 'शोधार्थी' on October 14, 2013 at 3:30pm

अच्छा है साहब...उम्दाः पलटवार !!!

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