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देख तो ले तिलमिला कर ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122         2122

खुश हुआ खुद को भुला कर

या कहूँ मै तुझको पा कर

खुद को भी मै ने सताया 

दोस्ती को आजमा कर

ज़िंदगी का बोझ सर पे

चल रहा हूँ लड़खड़ा कर

मैने सच को सच कहा है

तू गिला से अब मिला कर

दर्द पिघले ,बह के निकले

कुछ तो ऐसा सिलसिला कर

हाथ चाहे तू झटक दे

मैने रक्खा दिल मिलाकर

ग़ैर के आंसू कभी पी

देख तो ले तिलमिला कर

तेरे अन्दर आग है तो

जुगनुओं सा ही जला कर 

ले धनक से रंग तू भी

फूल के जैसे खिला कर

*********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 10:01pm

आदरणीय बृजेश भाई जी गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 9:59pm

आपकी सरहना से मेरा हौसला दोबारा हुआ !!!!! आपका हार्दिक आभार !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 9:58pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई , अपनी उत्साह वर्धक टिप्पणी से मेरा हौसला बढाने के लिये मै आपका दिल से शुक्रिया !!!!!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 16, 2013 at 9:07pm

छोटे भाई अच्छी गज़ल की बधाई। आ. गणेश जी के विचार  भी दो शेरों पर  लाजवाब लगे।    

Comment by Sushil.Joshi on October 16, 2013 at 8:54pm

दर्द पिघले ,बह के निकले

कुछ तो ऐसा सिलसिला कर........ वाह वाह.....

तेरे अन्दर आग है तो

जुगनुओं सा ही जला कर........... वाह बहुत ही शानदार गज़ल कही है आपने आदरणीय गिरिराज जी...... हृदय से दाद कुबूल करें....

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 7:48pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने! बहुत बहुत बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 16, 2013 at 7:24pm

आदरणीय भण्डारी जी,  वाह!

 "हाथ चाहे तू झटक दे

मैने रक्खा दिल मिलाकर"

-----------------------------------खूब सूरत गजल। दिली दाद कुबूल करें।  सादर,

Comment by Abhinav Arun on October 16, 2013 at 7:14pm

मैने सच को सच कहा है

तू गिला से अब मिला कर

दर्द पिघले ,बह के निकले

कुछ तो ऐसा सिलसिला कर

तेरे अन्दर आग है तो

जुगनुओं सा ही जला कर  ...सुन्दर सशक्त ग़ज़ल वाह क्या कहने बधाई आदरणीय श्री गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 6:43pm

आदरणीय शिज्जू भाई , ग़ज़ल की सराहना कए मेरा उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 16, 2013 at 6:00pm

आदरणीय गिरिराज जी बहुत अच्छी ग़ज़ल है बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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