1212 1122 1212 22
झटक के ज़ुल्फ़ किसी ने जो ली है अंगडाई,
ये कायनात लगे है हमें कुछ अलसाई.
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किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया,
मिली यहाँ है मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.
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किये थे रब्त सभी आपने कत’आ मुझसे,
जो कामयाब हुआ तब बढ़ी शनासाई.
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बता रहे थे मुझे, एक दिन, सभी पागल,
हुए सभी वो यहाँ लोग, आज सौदाई.
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मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,
न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.
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यहाँ सभी है लगे जिसको आज़मानें में,
अभी सिखा के गया ‘नूर’ वो मसीहाई.
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मौलिक एवं अप्रकाशित
निलेश 'नूर'
Comment
लेकिन ये जगजीत सिंह जी की ग़ज़ल के शेर जैसा हो जाएगा ...
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किसी को प्यार मिले और किसी को रुसवाई
मुहब्बतों के सफ़र भी अजीब होतें है ...
ये पीने वालें बहुत ही अजीब होतें है .......
ऊपर से बहर भी यही है :( कुछ और सोचता हूँ
आदरणीय वीनस केसरी जी, ग़ज़ल के शेर आप की ज़बान पर चढ़ने लगे, आपकी इस टिप्पणी से मेरे हौसले बढ़ने लगे ..बहुत बहुत धन्यवाद .. आप की सलाह आज्ञा तुल्य है. विचार करते करते कुछ मुझ से भी बन पड़ा है वो आप की नज्र करता हूँ ...आप की इजाज़त होगी तो तरमीम करूँगा ..पेश है ..
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किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया,
मुहब्बतों के सफ़र में मिली है रुसवाई.
एक और कामयाब ग़ज़ल के लिए ढेरो दाद हर शेर ज़बान पर चढ जा रहा है
बहुत खूब
इसे ऐसा कर दें तो किस रहेगा !!!
किसी से प्यार न पाया हर एक ने ठुकराया,
मिली सभी से मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.
धन्यवाद बृजेश जी, चन्द्र शेखर जी, नीरज जी ...
आभार
मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,
न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.
बहुत खूब ..
अच्छी ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय गिरिराज जी, रामनाथ जी, गणेश जी ... आप को ग़ज़ल पसंद आई तो लिखना सार्थक हुआ. धन्यवाद
आभार
//किसी से प्यार न पाया सभी ने ठुकराया,
मिली यहाँ है मुहब्बत में सिर्फ रुसवाई.//
वाह वाह, क्या कहने, बढ़िया शेर हुआ है, इस ग़ज़ल की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
क्या कहने....नूर साहब.........मजा आ गया....शानदार ग़ज़ल...!!!..
इस शे'र के लिए जिंदाबाद...........!!!!!!............
.मुहब्बतों के सफ़र से ही लौट कर हमनें,
न करिए इश्क़ कभी, बात सबको समझाई.
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