"क्यों..भाई, क्या हुआ ? अतिवृष्टि से चौपट हुयी फसल का, मुआवजा दे रही है न राज्य-सरकार ?" रामभरोस ने बड़ी आशाभरी आवाज से पूछा.
"काकाजी..!! दे तो रही थी, पर विपक्ष के नेताओं ने, अगले महीने चुनाव आता देख, चुनाव-आयोग को शिकायत कर स्टे लगवा दिया.. अब देखो क्या होता है ", नितिन ने बड़ी निराशा से कहा.
"अरे बेटा ! सोच रहे थे, कुछ पैसे मिल जाते तो अगली फसल के लिए खाद पानी का जुगाड़ हो जाता, और दीवाली भी मना लेते...", रामभरोस ने कराहते हुए स्वर में कहा..
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
आज की राजनीति में केवल स्वार्थ ही स्वार्थ भरा पड़ा है, नेताओं को किसी की कोई परवाह न्हीं, सभी को फिक्र है तो सिर्फ यह कि कुर्सी कैसे प्राप्त की जाय...
आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अजीत शर्मा जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखिये
सादर!
रचना ने आपके मन को छू लिया, मुझे लेखनकर्म की सार्थकता का प्रमाण मिलगया, मन, आत्मबल व् खुशी से भर गया, आपका हृदय से आभार आदरणीय योगराज जी, स्नेह व् आशीर्वाद युहीं बनाये रखियेगा
सादर!
बहुत ही सुंदर लघु कथा है आदरणीय जितेन्द्र भाई..... राजनीतिज्ञों को भला जनता की परेशानी से क्या मतलब..... उनकी कुर्सी पर कोई आँच नहीं आनी चाहिए बस.......
नेताओं को किसी की परेशानी से क्या सरोकार, जो एक सरकार करती है दूसरी आकर उससे उलट करती है,बीच में तो आम जनता ही पिसती है न ? बहुत अच्छी लघु कथा ,बधाई आपको |
भाई बागी जी, विपक्ष की बात पर याद आया कि जब पंजाब में भाखड़ा नंगल डैम बन रहा था तब विपक्ष वालों ने उसका बहुत विरोध किया था. पता है क्या कहकर ? यह कहकर कि इसकी वजह से पंजाब रेगिस्तान में तब्दील हो जायेगा क्योंकि सरकार किसानो को बिजली "निकाल" कर घटिया पानी देगी. :))))))
आपका कहना एकदम सटीक व् सच है, जनहित से आज की राजनीति का दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध न्हीं है शायद..
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय अभिनव अरुण जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय सौरभ जी,स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
इस वर्ष अतिवृष्टि से किसानों को बहुत नुकसान हुआ है, अब एकमात्र सहारा मुआवजा, उस पर भी राजनीति हो रही है, विधायकों को जिस क्षेत्र से , ज्यादा वोट मिलते है, वहां आगे रहकर पटवारी से सर्वे करवा रहें है, फिर विपक्षी दल भी कहाँ चुप बैठने वाला है, तेरा न्हीं, मेरा न्हीं, तो किसी का न्हीं...! सरकार द्वारा मुआवजा के रूप में, परोसी हुयी थाली को ढोलने को ही सही समझ गया..!
इन समस्याओं से रोज, रूबरू हो रहा था, ओ बी ओ परिवार व् आप सभी रचनाकारों के सानिध्य में रहकर, एक कथा के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर दी,
सादर!
भाई विपक्ष में बैठे हैं तो विरोध करना बनता है न, जनता जाए भाड़ में, अच्छी लगी यह लघुकथा, बधाई आदरणीय जीतेन्द्र जी ।
आम-जन की पीड़ा को भला समझा कौन है ? बहुत गहरी और संतुलित सोच के साथ रचनाकर्म हुआ है. बधाई स्वीकारें... .
भाई जीतेन्द्रजी, मंच से आपकी संलग्नता अब रंग दिखा रही है.
शुभ-शुभ
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