काँटे हैं किस के पास में किस पे गुलाब है।
जनता के पास आज भी सबका हिसाब है।
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पढ़कर के जिस किताब को बच्चे बहक गये ,
बोलो र्इमान वालो वो कैसी किताब है।
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लालो गुहर नही है मेरे पास में मगर ,
जो कुछ भी मेरे पास है वो लाजबाब है।
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बैठे है करके बंद वो दरवाजे खिड़कियाँ ,
ये सोचकर कि अपना मुकददर खराब है।
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ये सच है हाथ पाँव में अब जान ही नही ,
जिन्दा लहू में अब भी मेरे इन्कलाब है।
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अंगार को बुझाइये पानी की धार से ,
ये मत कहो कि र्इंट का पत्थर जबाब है।
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दुनिया में अमन चैन हो नफरत न हो कहीं ,
मेरी गज़ल का बस यही लब्बो लुआब है।
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देखो हमारे साथ में अब वो भी हो लिये ,
जिनके न दिल में जोष है तन में न ताब है।
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जिसका मिज़ाज दोपहर को गर्म था बहुत,
गर्दिष में ष्शाम को वही अब आफताब है।
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मौलिक अप्रकाशित एवं अप्रसारित
Comment
गज़ल के शिल्प का मुझे ज्ञान नहीं है लेकिन भावों का संप्रषण बहुत अच्छा है..... बधाई हो आ0 राम अवध जी...
आदरणीय वीनस जी मेरे ज्ञान के अनुसार बहर है
मफऊल फाइलात मफार्इल फाइलुन
1121 2121 1221 2111
कहन बहुत अच्छा है! बहर में बांधने का प्रयास करें. इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
भाव अति सुन्दर , मगर केसरी जी की बात पर गौर फरमाईयेगा
आदरणीय ग़ज़ल की मात्रा बता दें जिससे तक्तीअ में आसानी हो जाए ...
कई प्रयासों के बाद भी बहर समझने में असफल हूँ
सादर
आपका अंदाज़ संयत है आदरणीय. मंच पर प्रस्तुत हुई अन्यान्य ग़ज़लें भी पढ़ जाइये. बहुत कुछ का समाधान होता जायेगा, आदरणीय.
शुभेच्छाएँ
क्या बात है आदरणीय बहुत खूब जोरदार अशआर कहे हैं आपने बधाई हो आपको
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