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बड़ी बातें मियां छोड़ों

१२२२     १२२२

बड़ी बातें मियां छोड़ों 

हमारा दिल न यूं तोड़ों

न हिन्दू है न वो मुस्लिम 

वो हिंदी है उसे जोड़ो 

छलकती हैं जहाँ आँखें 

मुझे रिन्दों वहां छोड़ों 

लगें दिलकश जो  शाखों पे 

हसीं गुल वो नहीं तोड़ों 

मिलेगी वक़्त पर कुर्सी 

मियाँ कुर्सी को मत दौड़ों 

लुटी कलियाँ चमन की हैं 

दरिंदों को नहीं छोड़ों 

बचा कुर्सी वतन बेंचा 

शरारत ये जरा छोड़ों 

जहर है अब हवाओं में 

हवा का आज रुख मोड़ों 

मौलिक व अप्रकाशित 

डॉ आशुतोष मिश्र 

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on October 19, 2013 at 6:28pm

अच्छी ग़ज़ल डॉ साहिब बहुत  बढीया सामयिक भाव है ..छोटी बहर ने रंग जमाया है , बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 19, 2013 at 6:14pm

आदरणीय आशुतोष भाई , छोटी बह्र को आप निभा ले गये इसके लिये आपको बहुत बधाई !!!! सभी शेर अच्छे हुये है !!! पुनः बधाई !!!!

Comment by Saarthi Baidyanath on October 19, 2013 at 5:10pm

न हिन्दू है न वो मुस्लिम 

वो हिंदी है उसे जोड़ो .....बहुत बढ़िया व  संदेशप्रद मिसरे ...वाह जी डॉक्टर साहिब ...वाह :) 

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 4:59pm

आ. Dr Ashutosh Mishra जी
आभार आपका कि आपने हमें इस योग्य समझा। वैसे मैं मार्गदर्शन देने की स्थिति में नहीं हूं। हां, सीखने सिखाने के इस सफर में हम और आप सहभागी जरूर बन सकते हैं। सादर।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2013 at 4:56pm

आदरणीय संदीप जी ...हौसला अफजाई के लिए हादिक धन्यवाद 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 19, 2013 at 4:56pm

आदरणीय शकील जी ...मैं भी संदीप जी की तरह पहले तो आपकी पैनी नजर की दाद देना चाहोंगा ...और गुजारिश भी करूंगा की भविष्य में जब कभी कोई कमी नजर आये यूं ही सलाह देने की कृपा करें ..मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद के साथ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 19, 2013 at 4:27pm

वाह वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद क़ुबूल कीजिये

आदरणीय शकील जी की पैनी नज़र का बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by शकील समर on October 19, 2013 at 3:56pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी, इस उम्दा गजल के लिए बधाई स्वीकारें। चूंकि बह्र छोटी है, इसलिए इसे निभाना कोई आसान काम नहीं है।

एक बात कहना चाहूंगा। आपने छोड़ो, तोड़ो, जोड़ो के साथ दौड़ो को काफिये में बांधा है। मेरे विचार में यहां सिनाद दोष आ रहा है। क्योंकि दौड़ो में हर्फ-ए-रवी (ड़) से पहले दीर्घ स्वर का विरोध हो रहा है।

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