मेरे अपने उधारी दे के ऋण को छोड़ देते हैं
मगर फिर नास्ते का दाम उसमें जोड़ देते हैं
चलाते योजना अक्सर वो अपने जेब भरने को
सियासी हैं बड़े नदियों का रुख भी मोड़ देते हैं
जो हैं कमजोर दुनिया में करें वो ज्ञान की बातें
बहादुर हैं जो हाँ करवाने सर ही फोड़ देते हैं
करे हैं जोंक सी यारी लिपट के यार मतलब से
निकल जाता है जब मतलब वो यारी तोड़ देते हैं
हवाएं जब करें साजिश चटक जाते हैं तब फानूश
तमस से जंग लड़ना दीप भी तब छोड़ देते हैं
.........दीप...........
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह... क्या बात है आ0 संदीप भाई.... कई मामलों पर एकदम सटीक बैठती इस प्रस्तुति हेतु बधाई....
एक दम सच्चाई से रूबरू करवाती इस रचना पर ढेरो बधाईयाँ आपको |
वाह !! बढ़िया भावों से सुसज्जित गजल हेतु बधाई स्वीकारें आ0 संदीप जी ।
सुंदर भावों के इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकारें ..सादर
मेरे अपने उधारी दे के ऋण को छोड़ देते हैं
मगर फिर नास्ते का दाम उसमें जोड़ देते हैं....वाह! बहुत सटीक बात
बेहतरीन गजल पर दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय संदीप जी
अच्छी ग़ज़ल है आदरणीय संदीप जी बधाई स्वीकार करें
मेरे अपने उधारी दे के ऋण को छोड़ देते हैं
मगर फिर नास्ते का दाम उसमें जोड़ देते हैं.....बहुत खूब.
सुन्दर सशक्त अश आर हार्दिक बधाई संदीप जी बधाई
आदरनीय सन्दीप भाई , उम्दा गज़ल कही है आपको हार्दिक बधाई !!!!!
जो हैं कमजोर दुनिया में करें वो ज्ञान की बातें
बहादुर हैं जो हाँ करवाने सर ही फोड़ देते हैं
मिसरा सानी कुछ अटक सा रहा है, इसे अगर यूँ कहें तो ………
बहादुर हैं जो करवाने को हाँ सर फोड़ देते हैं
बाकी के सभी अशआर मस्त मस्त लगें , बहुत बहुत बधाई प्रिय संदीप भाई ।
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