For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदगी ग़ुज़र गई - (रवि प्रकाश)

न बिजलियाँ जगा सकीं,
न बदलियाँ रुला सकीं।
अड़ी रहीं उदासियाँ,
न लोरियाँ सुला सकीं।

न यवनिका ज़रा हिली,
न ज़ुल्फ की घटा खिली।
उठे न पैर लाज के,
न रूप की छटा मिली।

जतन किए हज़ार पर,
न चाँद भूमि पे रुका।
अटल रहे सभी शिखर,
न आस्मान ही झुका।

चँवर कभी डुला सके,
न ढाल ही उठा सके।
चढ़ा के देखते रहे,
न तीर ही चला सके।

वहीं कपाट बंद थे,
जहाँ सदा यकीन था।
जिसे कहा था हमसफ़र,
वही तमाशबीन था।

कली-कली बहार की,
पुकार के चली गई।
वसंत का दुकूल भी,
उतार के चली गई।

न रंग था न रूप ही,
न नक़्श,न निशानियाँ।
सँभल सके थे जिस घड़ी,
बची थीं बस कहानियाँ।

बिना पिए न जी सके,
न ज़ख़्म आप सी सके।
समुद्र सी तृषा मगर,
न चार घूँट पी सके।

पड़ाव अनगिनत रहे,
कहीं न कोई अंत था।
तलाशते रहे जिसे,
वही मगर दुरंत था।

क़दम-क़दम सदा मिलीं,
अबूझ सी पहेलियाँ।
वही शिकन निगाह में,
वही खुली हथेलियाँ।

अनाम से मुकाम थे,
जहाँ-जहाँ नज़र गई।
किधर चली थी ज़िंदगी
कहाँ-कहाँ गुज़र गई॥

मौलिक व अप्रकाशित॥

Views: 1041

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 9:35pm

सुंदर धाराप्रवाह...... एक तर्ज़ पर गायी जा सकने वाली प्रस्तुति.....  बहुत खूब आ0 रवि प्रकाश जी.... बधाई...

Comment by Ravi Prakash on October 24, 2013 at 7:44pm
धन्यवाद सारथी जी।आपको रचना अच्छी लगी, जान कर मन को असीम आनंद प्राप्त हुआ। स्नेह बनाए रखें।
Comment by Saarthi Baidyanath on October 24, 2013 at 7:12pm

बेजोड़ प्रवाह...कल कल करती निर्झरणी की तरह ...! पढ़कर मजा आ गया जी ...बहुत सुन्दर :)

Comment by Ravi Prakash on October 24, 2013 at 4:53pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 24, 2013 at 3:57pm

आदरणीय रवि जी ..इस सुंदर गीत के लिए हार्दिक बधाई वहीं कपाट बंद थे,
जहाँ सदा यकीन था।
जिसे कहा था हमसफ़र,
वही तमाशबीन था।..जीवन में ऐसा मंजर हमेशा ही आ जाता है ..बेहतरीन ..सादर

Comment by Ravi Prakash on October 24, 2013 at 1:48pm
आप पहली नज़र में सब कुछ ताड़ जाते हैं। मैं आपका संकेत भली-भाँति समझ रहा हूँ। बहरहाल नज़रे-इनायत के लिए शुक़्रगुज़ार हूँ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2013 at 1:30pm

निग़ाह में शिकन का होना बहुत अच्छा प्रयोग है, भाईजी. आपके बिम्बों और प्रयुक्त अवधारणाओं पर मैं आपको साधुवाद देता हूँ.

मैं तो आपकी प्रस्तुति पर अपनी बात कह रहा हूँ. ऐसी कविताई साठ और उसके उत्तर के दशक में खूब चली थी. अब आप समझ रहे होंगे कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ.

शुभ-शुभ

Comment by Ravi Prakash on October 24, 2013 at 12:01pm
एक प्रयोग के तौर पर लिखा था। ये सोच कर कि अगर माथे पर शिकन हो सकती है तो निगाह में भी हो सकती है। शायद कुछ ज्यादा ही लाक्षणिक प्रयोग हो गया।
Comment by अरुन 'अनन्त' on October 24, 2013 at 11:41am

आदरणीय रवि भाई बहुत ही सुन्दर कविता बनी है प्रवाह भी बेहद सुन्दर है इस हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें.

क़दम-क़दम सदा मिलीं,
अबूझ सी पहेलियाँ।
वही शिकन निगाह में,   निगाह में शिकन मुझे अटपटा लगा भाई
वही खुली हथेलियाँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2013 at 11:16am

अच्छी कविता हुई है. प्रयासरत रहने के क्रम में हुई यह रचना आने वाले दिनों में अच्छी कविताओ के लिए जगह बनाती दिख रही है.

एक तथ्य अवश्य साझा करना चाहूँगा, कि रचनाकर्म का प्रारम्भ अवश्य प्रभावित होने से होता है, लेकिन उसके सतत होने का कारण आज के परिप्रेक्ष्य को ढालने से बनता है.

इस कविता पर बधाइयाँ लें..

शुभेच्छाएँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service