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वाह !!! अति सुंदर गजल हेतु बहुत बधाई आपको ।
सुंदर भावों से सुसज्जित इस प्रस्तुति हेतु बहुत बहुत बधाई आ0 रवि प्रकाश जी.....
भाई रविप्रकाश जी, आपकी इस ग़ज़ल की आत्मा बहुत शुद्ध है और उसी कारण इसके दो-एक शेर अपने प्रतीकों के कारण उत्कृष्ट की श्रेणी में रखे जा सकते हैं. लेकिन मैं उसी आत्मा और प्रयुक्त होने वाले प्रतीकों की बिना पर आपसे एक महत्त्वपूर्ण तथ्य साझा करना चाहता हूँ. वो ये कि राम की संज्ञा निशाचरों के समानान्तर ’है’ के साथ उचित नहीं लगती, बल्कि ’हैं’ उचित होगा. यही कुछ श्याम के साथ होगा जहाँ दुःशासनों का प्रयोग हुआ है. यह तो हुई है एक बात.
दूसरे, ज़िंदगी मेरी-तुम्हारी कौड़ियों के दाम है में भी वाक्य बहुवचन का होगा नकि एकवचन का जैसा कि प्रयुक्त हुआ है.
आशा है, इन तथ्यों पर ध्यान देंगे. वैसे आपका प्रयास बहुत संयत हुआ है.
बधाई तथा शुभकामनाएँ
आदरणीय रविप्रकाश जी
शानदार ग़ज़ल हुई है, सभी अशआर पसंद आये..बहुत बहुत बधाई
Har nazar to ashna ha Aap kyun badnam hain. Excellent.
आदरणीय ,रवि भाई , एक अच्छी गज़ल के लिये आपको बहुत बधाई !!!!
राहुओं को जीवनामृत, नीलकण्ठों को गरल,
अंत में प्रत्येक मंथन का यही अंजाम है। ------- वाह वा !!!!!
वाह रवि भाई वाह एक बहुत ही सुन्दर लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी के सभी अशआर पसंद आये दिली दाद कुबूल फरमाएं.
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