For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'- वक़्त ज़ाया करो, न राहों में....

२१२२ १२१२ २२   
.
वक़्त ज़ाया करो, न राहों में,
मंजिलों को रखो निगाहों में.
.

फूल ही फूल दिल में खिलते है,
आप होते हो जब भी बाहों में.
.

है नुमाया पता नहीं क्या कुछ,
और क्या कुछ छुपा है चाहों में.
.

तख़्त ताज़ों को ये उलट देंगी,
वो असर है मलंग की आहों में.
.

है डराती मुझे मेरी वहशत,
तू मुझे ले ही ले पनाहों में.
.  

आज है वक़्त तू संभल नादां,
क्यूँ फंसा है बता गुनाहों में.
.

साथ देने लगे हो आंधी का,    
तुम गिने जाओगे तबाहों में.
.

दिल न काबू में रख सके अपना,
आज होते वगरना शाहों में.   
.

चाहता ‘नूर’ था फ़क़त इतना,
दम वो तोड़े तुम्हारी बाहों में. 
.  

निलेश 'नूर'
मौलिक एवं अप्रकाशित 
 

Views: 721

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 27, 2013 at 8:16am

शुक्रिया विशाल जी ... आभार 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 26, 2013 at 11:05pm

चाहता ‘नूर’ था फ़क़त इतना,
दम वो तोड़े तुम्हारी बाहों में. 

वाह - वाह.......क्या कहने......!!!!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2013 at 7:51pm

शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 25, 2013 at 4:42pm

//वक़्त ज़ाया करो, न राहों में,
मंजिलों को रखो निगाहों में.//  बहुत अच्छी बात कही आदरणीय नूर साहब बधाई स्वीकार करें

अच्छी ग़ज़ल है दाद कुबूल करें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2013 at 1:18pm

धन्यवाद सौरभ सर, आगे से संभल के स्थान पर सँभल का प्रयोग करूँगा
आभार ... 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 25, 2013 at 1:07pm

हार्दिक आभार आदरणीय श्री सौरभ सर, आदरणीय निलेश जी अब आपको स्पष्ट हो गया होगा. सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 25, 2013 at 1:03pm

सुन्दर प्रस्तुति भाईजी. फूल ही फूल वाले शेर के लिए विशेष बधाई..

आपने सँभल की मात्रा सही बतायी है  -- १२

लेकिन सँभल के पर अनुस्वार देने की गलत परिपाटी चल पड़ी है.  यही कनफ्यूजन का मुख्य कारण है.

सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2013 at 12:53pm

धन्यवाद  अरुन शर्मा 'अनन्त' जी ...
संभल का मात्रा भार १२ ही है .. जगजीत सिंह जी की गायी हुई एक ग़ज़ल देखें Come Alive से है ...

१२२/१२२/१२२/१२२ 

.

कोई पास आया सवेरे सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे सवेरे

.

मेरी दास्तां को ज़रा सा बदल कर
मुझे ही सुनाया सवेरे सवेरे

.

जो कहता था कल संभलना संभलना
वही लड़खड़ाया सवेरे सवेरे

.

कटी रात सारी मेरी मयकदे में
ख़ुदा याद आया सवेरे सवेरे

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 25, 2013 at 11:30am

आदरणीय निलेश जी बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर उम्दा बन पड़े हैं बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

आज है वक़्त तू संभल नादां, (आदरणीय संभल की मात्रा 22 होती है)

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2013 at 8:00am

धन्यवाद आशुतोष जी, गिरिराज जी, बैद्यनाथ जी, सुशिल जी.
आदरणीय गिरिराज जी, ध्यानाकर्षण हेतु धन्यवाद  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
9 hours ago
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service