For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं लेटा हूँ घास पर / सूखी भूरी घास 

जिसके होने का एहसास भर है

 

जमीन गरम है

लेकिन लेटा हूँ 

धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी

तपन की अनुभूति

 

उड़े जा रहे हैं

पंछी एक ओर 

शरीर के नीचे

रेंगती चींटियाँ 

पास ही खेलते कुछ बच्चे 

कुछ लोग भी

इधर-उधर छितरे, घूमते-बैठे

 

मैं निरपेक्ष

लेटा तकता आसमान

कि कभी टूटकर गिरेगा

और धरती का

रंग बदल जाएगा

                - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 30, 2013 at 5:49pm

आदरणीय राहुल भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 30, 2013 at 5:49pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 30, 2013 at 5:48pm

आदरणीय रमेश जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 30, 2013 at 10:54am

यूं ही घास पर लेट घास की धड़कन सुनना ..या दरख्त से लिपट उसके सपन्दनों में एक हो जाना, या अनंत आसमान में यूं ही खो जाना...या ऐसा ही बहुत कुछ.................. यहीं से जन्मता है मन में एक सच, समझ आता है दीखता है वो खूबसूरत सच..

ऐसे ही एक खामोश सच को जीते सी ये प्रस्तुति बहुत सुन्दर लगी आदरणीय बृजेश जी 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 27, 2013 at 6:21pm

इस सुंदर रचना के लिये आदरणीय नीरजजी आपको बधाई

Comment by बृजेश नीरज on October 27, 2013 at 12:46am

आदरणीय विशाल जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on October 27, 2013 at 12:45am

आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 26, 2013 at 11:21pm

बहुत ही सुन्दर कल्पना से सजी हुई रचना !!!!

Comment by vijay nikore on October 26, 2013 at 6:45pm

बहुत ही सुन्दर रचना है। बधाई।

Comment by बृजेश नीरज on October 25, 2013 at 10:36pm

आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय Aazi Tamaam जी नमस्कार। अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई। 11वां शे'रअच्छा लगा।"
13 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय Aazi Tamaam जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर-दर-शेर दाद-ओ-मुबारकबाद कुबूल कीजिए।…"
47 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दयारामजी ग़ज़ल का बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सोच के आये थे कुछ दर्द से राहत होगी तेरे उपवन का तो हर फूल ही पत्थर निकला वाह बहुत बढ़िया शेर हुआ…"
59 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आसमाँ छूने की जल्दी में था हर शख्स मगर  जब भी निकला वो क़दम रख के ज़मीं पर निकला वाह बहुत खूब।"
1 hour ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक आभार। "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय।"
1 hour ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, हौसला बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद। "
1 hour ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय, अमित जी संज्ञान हेतु हार्दिक आभार। "
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"बहुत बहुत शुक्रिया ज़र्रानवाज़ी का आ श्याम जी"
1 hour ago
जयनित कुमार मेहता replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीया ऋचा जी, सादर अभिवादन। ग़ज़ल तक पहुँचने एवं उस्ताहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभारी हूँ।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service