बह्र : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
मेरे संगदिल में रहा चाहती है
वो पगली बुतों में ख़ुदा चाहती है
सदा सच कहूँ वायदा चाहती है
वो शौहर नहीं आइना चाहती है
उतारू है करने पे सारी ख़ताएँ
नज़र उम्र भर की सजा चाहती है
बुझाने क्यूँ लगती है लौ कौन जाने
चरागों को जब जब हवा चाहती है
न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती
मुई इश्क में भी नफ़ा चाहती है
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
उतारू है करने पे सारी ख़ताएँ
नज़र उम्र भर की सजा चाहती है
बहुत सही.. वाह !
ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है.
क्यूँ या क्यों को गिराया जा सकता है क्या ? देखियेगा.
सादर
सदा सच कहूँ वायदा चाहती है
वो शौहर नहीं आइना चाहती है/////
न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती
मुई इश्क में भी नफ़ा चाहती है///////
वाह वाह वाह आदरणीय धरमेन्द्र जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ///हार्दिक बधाई आपको /सादर
आदरणीय धरमेन्द्र भाई , बहुत लाजवाब गज़ल कही है !!!! आपको ढेरों बधाई !!!!
न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती
मुई इश्क में भी नफ़ा चाहती है ------------------------- बेमिसाल !!!!!!
आदरनीय इसे गलती बताना न समझें -- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन - बह्र की तकतीअ मै कभी कर नही पाता , अगर दो एक शेरों की तक्तीअ कर के बता दें तो मेहरबानी होगी !!!!
वाह आदरणीय धर्मेन्द्र जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल
//न दो दिल के बदले में दिल, बुद्धि कहती
मुई इश्क में भी नफ़ा चाहती है// बहुत बढ़िया शे'र है वाह
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