मात्रा भार - 222 ,222 ,22
खोल शिखा फिर आन करें हम
आज गरल का पान करें हम।
ज्वालाओं के धनुष बना कर
लपटों का संधान करें हम।
अंगारों सा धधक रहा उस
यौवन पर अभिमान करें हम।
अँधियारा जब छा जाये तो
खुद को ही दिनमान करें हम।
समिधाओं से राख उड़ी है
आहुति का आह्वान करें हम।
अपना कौन पराया कितना
अब उनकी पहिचान करें हम।
कर कौन रहा कल की चिंता
कल का भी कुछ ध्यान करें हम।
-ललित मोहन पंत
0021 रात
30. 10 . 13
"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
खोल शिखा फिर आन करें हम
आज गरल का पान करें हम।
ज्वालाओं के धनुष बना कर
लपटों का संधान करें हम।
अंगारों सा धधक रहा उस
यौवन पर अभिमान करें हम।
अँधियारा जब छा जाये तो
खुद को ही दिनमान करें हम। ////शब्दों का अद्भुत प्रयोग ////// बहुत बहुत बधाई भाई ललित जी। .
sundar
आदरणीय विजय मिश्र जी Kavi Devendra Pandey जी annapurna bajpai जी , मेरे जैसे नवांकुर के प्रयास पर आप सब की स्नेह वर्षा के प्रति में कृतज्ञ हूँ … पुनः आभार
बहूत सुंदर रचना , बहुत बधाई आपको आ0 ललित मोहन जी ।
BAhut Sundarrrrrrrr
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