इन खामोश क्षणों में
चाहा था
तुमको न याद करूँ /
लेकिन
बरखा की बूँदो के साथ
मेरा मन
भीग गया /
और याद आये वो बादल ,
जो आये , छाये
और लौट गए
बिन बरसे ही /
लेकिन
मन के आँगन में
फूटी एक नन्ही कोंपल
मुरझाई नहीं
कुछ ज्यादा हरी हुई /
और याद आया
वो सपना
जिसमे तुम थे
मै भी न था
क्योंकि
वह मेरी आँखों का ही सपना था /
और याद आई
वो सूनी, गरम दोपहरी
करती ख़ामोशी से
इंतज़ार इक आहट का /
पर कितने मौसम
बदल गए
नन्ही कोंपल भी
सूखी नहीं ,
वह सपना भी
ठहरा है पलकों पर
आँसू सा ,
अब भी
इस दिल को
हर पल इंतज़ार है
शायद उस आहट का /
फिर भी मैंने चाहा
इन खामोश क्षणों में
तुमको न याद करूँ
लेकिन बरखा कि बूंदों के साथ
मेरा मन भीग गया ..............
मौलिक एवं अप्रकाशित
अरविन्द भटनागर ' शेखर'
Comment
इस मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद, आदरणीय अरविन्द जी।
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय अरविन्द जी ...किसी को पा लेने की इच्छा में जो मधुरता है उसे पा लेने में नहीं ..बस ये कलि यूं ही हरी रहे ..सादर बधाई के साथ
आ0 अरविंद जी सुंदर रचना बधाई आपको ।
अंतर्मन को छूती इस अद्भुत रचना हेतु बहुत बहुत बधाई आदरणीय अरविन्द भाई जी....
आदरणीय अरविंद भाई जी बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना बहुत बहुत बधाई स्वीकारें
बहुत अज़ीज़ से ज़ज्बात जो जुबां पर नहीं आते बस कविता में ही ढल अर्थ पाते हैं.....उनको संजोती हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.
हार्दिक शुभकामनाएं
इस तरह की अभिव्यक्तियों की शृंखला सी बन रही है. यह अच्छा है.
शब्द की अक्षरियों पर विशेष ध्यान दिया करें.
एक बात और:
भींगना वस्तुतः भीगना होता है. इ्से सुधार लें.
Dost kya kahoon Man to mera bhi bheeg gaya.
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