चाल बड़ी मनमोहक लागत, खेलत खात फिरै इतरावै !
लाल कपोल लगे उसके अरु ,होंठ कली जइसे मुसकावै !!
भाग रहा नवनीत लिये जब, मात पुकारत पास बुलावै !
नेह भरे अपने कर से फिर ,लाल दुलारत जात खिलावै !!
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार भाई रमेश जी । सादर
बहुत ही सुंदर आदरणीय बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी .... सादर
शिशु कृष्ण जी की और माँ यशोदा जी की याद आ गई आपकी रचना को पढ़कर। बधाई।
अनुमोदन हेतु बहुत बहुत आदरणीय सौरभ जी,कुछ और सुधर करके आपको मेसेज करता हूँ कृपा कर मार्गदर्शन करियेगा ...सादर
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आदरणीया राजेश कुमारी जी...सादर
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आदरणीया अन्नपूर्णा जी...…सादर
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आदरणीय गिरिराज जी...…सादर
यह सवैया छंद प्रयास के लिहाज से उचित है.
दूसरे पद को तनिक और समृद्ध ही नहीं पुष्ट भी किया जा सकता था. तुक पर विशेष ध्यान रखें.
शुभेच्छाएँ
मनमोहक मत्तगयन्द सवैया ,बधाई राम शिरोमणि जी
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