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सवैया(मत्तगयन्द )

चाल बड़ी मनमोहक लागत, खेलत खात फिरै इतरावै !

लाल कपोल लगे उसके अरु ,होंठ कली जइसे मुसकावै !!

भाग रहा नवनीत लिये जब, मात पुकारत पास बुलावै !

नेह भरे अपने कर से फिर ,लाल दुलारत जात खिलावै !!

****************************************************** 

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 810

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on November 11, 2013 at 10:07pm

बहुत  बहुत  आभार  भाई  रमेश  जी  । सादर 

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 11, 2013 at 9:11pm

बहुत ही सुंदर आदरणीय बधाई

Comment by ram shiromani pathak on November 11, 2013 at 5:39pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी .... सादर

Comment by vijay nikore on November 11, 2013 at 10:27am

शिशु कृष्ण जी की और माँ यशोदा जी की याद आ गई आपकी रचना को पढ़कर। बधाई।

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 10:07pm

अनुमोदन  हेतु बहुत बहुत आदरणीय सौरभ जी,कुछ और सुधर करके आपको मेसेज करता हूँ कृपा कर मार्गदर्शन  करियेगा ...सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 10:02pm

उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आदरणीया राजेश कुमारी   जी...सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 10:00pm

उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आदरणीया अन्नपूर्णा  जी...…सादर 

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 9:59pm

उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आदरणीय गिरिराज जी...…सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 10, 2013 at 9:56pm

यह सवैया छंद प्रयास के लिहाज से उचित है.

दूसरे पद को तनिक और समृद्ध ही नहीं पुष्ट भी किया जा सकता था. तुक पर विशेष ध्यान रखें.

शुभेच्छाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 10, 2013 at 9:25pm

मनमोहक मत्तगयन्द सवैया ,बधाई राम शिरोमणि जी 

कृपया ध्यान दे...

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