For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यहाँ परछाईयों का सौदा होता है
हर चीज यहाँ बिकाऊ है
हर पल तमाशा लगता है
तुम अपना दाम कहो
छुप के नहीं खुले आम कहो
क्या लोगे अपनी यारी का
क्या लोगे अपनी दिलदारी का
मेरा गम लोगे कितने में
तुम प्यार करोगे कितने में
सब जज़बात तुम मेरे नाम करो
हमराही तुम अपना दाम कहो
पर दाम चुकाने के खातिर
हम अपनी जेब टटोलें तो
बस प्यार मिलेगा बहुत सारा
पर ये सिक्के अब कहाँ चलते हैं
ये दुनिया बे-एतबारी की .....
ये अर्ज है हर व्यापारी की ....


मौलिक व अप्रकाशित

Views: 628

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on November 14, 2013 at 7:28pm

भाव और प्रवाह सभी मुग्ध कर रहे हैं बार बार पढ़े जाने लायक रचना , हार्दिक बधाई आदरणीय !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 14, 2013 at 3:55pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति अंतिम पंक्तियाँ अत्यंत खूबसूरत हैं बधाई स्वीकारें

बस प्यार मिलेगा बहुत सारा
पर ये सिक्के अब कहाँ चलते हैं
ये दुनिया बे-एतबारी की .....
ये अर्ज है हर व्यापारी की

Comment by Meena Pathak on November 14, 2013 at 12:12pm

बहुत सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति | हार्दिक बधाई स्वीकारें | सादर 

Comment by Akhand Gahmari on November 14, 2013 at 11:57am

दम हैं

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 14, 2013 at 11:54am

आपकी बात और है  वर्ना कहाँ मिलता है प्यार

पर  आपके  प्यार   पर  हमें  है  ऐतबार  I

Comment by Sushil.Joshi on November 14, 2013 at 5:25am

वाह.... सुंदर एवं सार्थक रचना है आ0 अमोद जी.... आज के परिपेक्ष्य को उजागर करती हुई जहाँ सचमुच हर चीज़ बिकाऊ है...... यहाँ तक कि रिश्ते नाते भी...... बधाई इस रचना हेतु....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service