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टूटी चूड़ियाँ

बह गया सिन्दूर

साथ ही टूटा

अनवरत

यंत्रणा का सिलसिला

बह गया फूटकर

रिश्तों का एक घाव

पिलपिला

अब चाँद के संग नहीं आएगा

लाल आँखें लिए

भय का महिषासुर

कभी कभी अच्छा होता है

असर

जहरीली शराब  का ..

... नीरज कुमार ‘नीर’

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 15, 2013 at 11:21am

नीरज जी

आपने कम शब्दों में जहरीली शराब का असर तारी कर दिया i  अब चाँद के संग नहीं आएगा------- भय का महिषासुर  i

 बहुत सुन्दर  i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 15, 2013 at 8:56am

आदरणीय नीर जी कोई जानबूझ  के ज़हर पिये तो चाहने वाले अक्सर लाचार हो जाते हैं, इस मर्मस्पर्शी रचना के लिये बधाई

कृपया ध्यान दे...

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