बेटी..रजनी ! तुम्हारे मामाजी के लड़के से, तुम्हारी ननद याने अपनी गायत्री की शादी, तय हो ही गई, मैं बहुत खुश हूँ, बस..! उन लोगो से लेनदेन की बात संभाल लेना, तुम तो जानती ही हो. आजकल महंगाई आसमान छू रही है.......सुलोचना जी ने अपनी बहु को बेटी बनाकर, बड़े ही प्यार से कहा..
जी हाँ..! माँ जी..महंगाई तो पिछले वर्ष भी आसमान से टिकी हुयी थी, जब आपने मेरे मायके वालों से लाखों का सोना और पूरी गृहस्थी का सामान मांग लिया था..खैर, वैसे मैंने मामाजी को फालतू खर्च की बजाय, मंदिर से शादी के लिए राजी कर लिया है.......रजनी ने अपनी सास के नहाने के गर्म पानी में, थोडा ठंडा पानी डालते हुए कहा..
जितेन्द्र ' गीत '
( मौलिक व् अप्रकाशित )
Comment
लघुकथा पर आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका हृदय से आभार आदरणीय अखिलेश जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर लेखनी की सार्थकता का प्रमाण मिलता है, अब आप इसे बहु का जवाब समझिये या समय की समय की करवट , और गर्म पानी से नहाना सेहत के लिए नुकसानदायक होता है, :)
आदरणीय अरुण अनंत जी , आपका हार्दिक आभार सादर!
रचना पर आपकी सराहना पाकर, हृदय से आभारी हूँ आपका आदरणीय चंद्रशेखर जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
जय हो.. :-))))
कोशिशें रंग ला रही हैं. अब भाषा पर भी ध्यान देना शुरु करें..
शुभेच्छाएँ
दुसरों की बेटी को घर लाते वक़्त महँगाई का ध्यान भी न रहा और जब खुद पर पड़ी तो.....
ऐसी विचारधारा को समक्ष करते एक सामाजिक पहलू पर सुन्दर प्रयास है आ० जितेन्द्र जी
बहुत्बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर
क्या बात है आदरणीय
बहुत सुन्दर लघुकथा
और चलिए कम से कम उनकी बहु ने बदला नहीं लिया
apane pe aate hi log deen ho jate hai warana shaah ...sunder laghukatha जितेन्द्र जी।
सुन्दर संदेश देती इस लघुकथा के लिए बधाई, आदरणीय जितेन्द्र जी।
सादर,
विजय निकोर
अच्छी लघुकथा और जिस ढंग से आपने लघुकथा का समापन किया है, बहुत पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय धर्मेंद्र जी ।
अच्छा कथ्य! आपको हार्दिक बधाई!
टाइपिंग की गलतियों और कहन की मजबूती व शिल्प पर और काम करने की जरूरत है!
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