१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ (बह्र--हजज मुसम्मन सालिम)
ज़रा बरसात हो जाती हिमालय भी निखर जाता
बदन फिर से दमक जाता ज़रा पैकर निथर जाता
परिंदा लौट के आता शज़र के सूखते आँसू
जरा सा साथ तुम देते ज़रा वो भी ठहर जाता
बड़ी उम्मीद थी उसको यहाँ कुछ कर दिखाने की
अगर तुम होंसला देते उफ़ुक उसका सँवर जाता
खड़ा चौखट पे रहता था सदा तेरी हिफ़ाजत को
कसम से आसरा देते नसीब उसका सुधर जाता
भला हो ऐ ख़ुदा तेरा जो तूने राह दिखलाई
भटक कर जिंदगी में आज वो जाने किधर जाता
निगाहें उन चरागों की ख़ुदा हम पे भी पड़ जाती
हथेली पर जला लेते सहर अपना उभर जाता
सिसकती कश्तियाँ जो दर्द ये उसको सुना देती
समंदर आज खुद अपने बढ़े कद से उतर जाता
खफ़ा होता बहुत चन्दा फ़ुसूँ उसका बिखर जाता
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*संशोधित
उफ़ुक=क्षितिज़
पैकर=मुखड़ा
सहर =जादू
फ़ुसूँ=जादू मन्त्र मुग्ध
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी ग़ज़ल की सराहना के लिए तहेदिल से आभार आपका परामर्श का हार्दिक स्वागत है
खड़ा चौखट पे रहता था सदा तेरी हिफ़ाजत को
कसम से आसरा देते नसीब उसका सुधर जाता........वाह! लाजवाब शेर
भला हो ऐ ख़ुदा तेरा जो तूने राह दिखलाई
भटक कर जिंदगी में आज वो जाने किधर जाता.........यह खास पसंद आया
लाजवाब गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीया राजेश जी
बेहतरीन ग़ज़ल है i
दाद देना चाहूगा i
पर शब्दो का प्रयोग उनके प्रचलित अर्थो में करे तो सबको मजा आयेगा i
//सच है की यह शब्द जादू के लिए प्रयोग होते हुए बहुत बार पढ़ चुकी हूँ // आदरणीया राजेश दीदी ये मुमकिन है
मेरा कहने का मतलब है कि एक खूबसूरत ग़ज़ल और इसका एक शब्द बदलने से खूबसूरती कम नही होती हो तो ये ज़्यादा अच्छा है। वैसे "सहर" शब्द आपने "जादू" के अर्थ में लिया लेकिन मैंने पहली बार इसे "सवेरा" समझ के पढ़ा था तब भी मुझे कुछ अटपटा नही लगा बल्कि ये ज़्यादा अच्छा लगा, वो तो ग़ज़ल पढ़ने के बाद शब्दों के अर्थ देखे तो समझ आया कि यहाँ सहर सवेरा नही बल्कि जादू है,
परवाज़ नूरपुरी के प्रष्ट हर्फ़े-आरज़ू से ----तूने मेरे दिल पे जाने ,सहर कैसा कर दिया...
आदरणीय गिरिराज जी मुझे विश्वास है की आप भी शब्द कोष देखकर ही बोल रहे होंगे वैसे ही नहीं, हम हिंदी भाषियों को तो शब्दकोष का सहारा लेना ही पड़ता है उर्दू के दिग्गज हम नहीं हैं कोई १२ मात्रा में उपयुक्त शब्द सोच रही हूँ तब तक उस्ताद लोगों की राय भी मिल जायेगी आपका दिल से आभार इस और ध्यान दिलाने का
शिज्जू भाई बहुत- बहुत शुक्रिया आपको ग़जल पसंद आई आपका मशविरा भी स्वागत योग्य है विद्वद जनों की राय भी मिले और लगे कि यह शब्द वास्तव में पसंद नहीं आ रहा है तो बदलने की सोचूंगी किन्तु ये सच है की यह शब्द जादू के लिए प्रयोग होते हुए बहुत बार पढ़ चुकी हूँ
आदरणीया राज कुमारी जी , मैने सहर का अर्थ लिखने से पहले शब्द कोश ( आदरणीय, मुहम्मद मुस्तफा खाँ , मद्दाह ) से और भी तय कर लिया था , फिर भी जानकारों का इंतिज़ार करना ज्यादा अच्छा है !!!! सादर !!!!
आदरणीया राजेशजी जहाँ तक ग़ज़ल की बात है ग़ज़ल तो बहुत अच्छी है बधाई आपको,
आदरणीया राजेश दीदी छोटा मुँह और बड़ी बात जिस शब्द के प्रयोग से संशय और सवाल खड़े होते हैं तो खूबसूरत ग़ज़ल का लुत्फ़ भी कम हो जाता है सो उनके प्रयोग से बचना उचित है आदरणीय गिरिराज सर की बात से मैं सहमत हूँ, वैसे सहर की जगह "कमाल" भी किया जा सकता है
आदरणीय राम अवध जी आपकी बधाई दिल से स्वीकार.
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