१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ (बह्र--हजज मुसम्मन सालिम)
ज़रा बरसात हो जाती हिमालय भी निखर जाता
बदन फिर से दमक जाता ज़रा पैकर निथर जाता
परिंदा लौट के आता शज़र के सूखते आँसू
जरा सा साथ तुम देते ज़रा वो भी ठहर जाता
बड़ी उम्मीद थी उसको यहाँ कुछ कर दिखाने की
अगर तुम होंसला देते उफ़ुक उसका सँवर जाता
खड़ा चौखट पे रहता था सदा तेरी हिफ़ाजत को
कसम से आसरा देते नसीब उसका सुधर जाता
भला हो ऐ ख़ुदा तेरा जो तूने राह दिखलाई
भटक कर जिंदगी में आज वो जाने किधर जाता
निगाहें उन चरागों की ख़ुदा हम पे भी पड़ जाती
हथेली पर जला लेते सहर अपना उभर जाता
सिसकती कश्तियाँ जो दर्द ये उसको सुना देती
समंदर आज खुद अपने बढ़े कद से उतर जाता
खफ़ा होता बहुत चन्दा फ़ुसूँ उसका बिखर जाता
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*संशोधित
उफ़ुक=क्षितिज़
पैकर=मुखड़ा
सहर =जादू
फ़ुसूँ=जादू मन्त्र मुग्ध
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गिरिराज जी तहे दिल से आभार आपका आपने सहर शब्द की बात की है आपका कहना सही है की इसका अर्थ सवेरा के रूप में अधिक होता है किन्तु ,मैंने उर्दू के शब्द कोष में भी और कई बड़े उर्दू के साहित्य कारों की रचनाओं में सहर को जादू के रूप में प्रयोग करते पढ़ा है उसमे विसर्ग कहीं नहीं देखे ----प्रसिद्ध ईरानी शायर ‘फ़िर्दौसी का एक वाक्य देखिये ---‘‘सात-आठ बरस की उम्र में मैंने पहली बार एक मुशायरा सुना। उस वक़्त तो मुझे वह मजलिस मज़हकाख़ेज़ (उपहासजनक) सी नज़र आई। वाह, वाह, सुबहान-अल्लाह, मुकर्रर इर्शाद हो वल्ला एजाज है, जादू है,सहर है या दाद देने वालों का उछलना, हाथों का हिलाना, सब का मिलकर शोर मचाना, अजीब मसख़रापन मालूम होता था। ,ऐसे ही कुछ और शायरों की रचनाओं में मुझे सहर जादू के अर्थ में मिला तभी लिखा बाकी उर्दू के जानकार ही बताएँगे
राजेश मृदु जी आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका.
खूबसूरत गजल के लिये बधार्इ
आदरणीया राजेश कुमारी जी , बहुत शानदार , जानदार गज़ल कही है !!!! सभी शेर सुन्दर हुये है !!!! आपको तहे दिल से बधाई !!!
बस एक बात -- सहर - शब्द का अर्थ - सवेरा , या जागृति होता है, और जादू या जादूगर के लिये जो उर्दू शब्द है वो - साहिर है , जिसका बहु वचन --सहरः लिखा जाता है !! आदरणीया , इस मिसरे को पुनः देख लीजियेगा !!!!
बहुत ही बढि़या लिखा है आपने, शानदार गज़ल के लिए आपको ढेरों बधाई, सादर
आदरणीय सुशील सरना जी आपकी सराहना से ग़ज़ल धन्य हुई तहे दिल से आभार
अभिनव अरुण जी ग़ज़ल पर आपकी मुहर लगना ही खुद में बड़ी बात है आश्वस्त हुई की ग़ज़ल आपको प्रभावित कर सकी ,तहे दिल से शुक्रिया.
bahut umda khaaskar
सिसकती कश्तियाँ जो दर्द ये उसको सुना देती
समंदर आज खुद अपने बढ़े कद से उतर जाता ....laaaaaajwaaaaaaab
बेहतरीन लाजवाब भाव हर शेर बोल रहा है सुन्दर गहरे भावों की जुबां ..जिंदाबाद ! बहुत मुबारकबाद इस कलाम के लिए आ. राजेश जी !!
आदरणीय श्याम नारायण जी तहे दिल से आभार आपका.
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