शब्द तरंगहीन
गहनतम
सान्द्रतम
और
निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
विलगता-विलयन के
सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे कोई स्वप्न
और
नियति
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में
खेलते है ..सृजन-सृजन !
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय जितेन्द्र जी
मेरी अभिव्यक्तियों का ठहराव व अंतर्धारा आपको पसंद आती है.....यह जानना संतुष्टि/शान्ति प्रदान कर रहा है
धन्यवाद इस रचना पर आपके सराह्नात्मक अनुमोदन के लिए.
प्रिय गीतिका जी
आपने अभिव्यक्ति के मर्म को जिस सद्ग्राह्यता से स्पर्श किया है..उसने अभिव्यक्ति की सम्प्रेषनीयत के प्रति आश्वस्ति प्रदान की है
//वास्तव मे सृजन नियोजन से नहीं होता वरन यह प्रफुल्लित मनोभावों का उत्पादनकारी परिणाम है//... यही मर्म है...हर सृजन का ...इसी के चलते मनुष्य अपना भाग्य विधाता स्वयं ही है...
हार्दिक धन्यवाद रचना को समझने के लिए और सराहने के लिए.
सस्नेह
आ० चन्द्र शेखर पाण्डेय जी
शब्दों की भाव कथ्य सांद्रता पर आपका अनुमोदन ....//व्यंजना चरम पर है//...बहुत संतुष्टिदायक लगा.
इस तरह की अभिव्यक्ति एक विस्तार की समग्रता को जीती हैं...पाठकजन अपने अनुसार उसे विविध सन्दर्भों में समझ सकते हैं.... और हर अर्थ में वो पूर्णता से ही तथ्यपरकता को संतुष्ट करती है.
आपकी सराहना के लिए हार्दिक आभार,
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
आपकी प्रतिक्रया पढ़ बहुत देर तक सोचती रही कि क्या लिखूं...
कल्पनातीत विषय है....इस पर सिर्फ इतना ही कहूँगी अभी कि 'बुद्धि'( किसी व्यक्ति विशेष की नहीं, पर वस्तुतः बुद्धि -माइंड की) की अपनी सीमाए हैं.. खैर ज्यादा कहना उचित नहीं.
आपको अभिव्यक्ति का कथ्य, विषयवस्तू पसंद आई , यह जानना मेरे लिए संतोषकारी है.
सादर धन्यवाद.
रचना आपको पसंद आयी, जान कर बहुत अच्छा लगा
हार्दिक धन्यवाद आ० राजेश कुमारी जी
आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
अभिव्यक्ति के शब्द चयन , कथ्य, भाव दशा के साथ अनुभूतियों को मान देने के लिए आपका शत शत आभार.
सादर.
अभिव्यक्ति की कथ्य सांद्रता अनुमोदित करने के लिए धन्यवाद नीरज मिश्रा जी
गहरे जल की तरह उत्कृष्ट शब्द व् भाव ,आपकी रचना में हमेशा पढने को मिले है, मद्धम मद्धम प्रवाह ली हुयी पंक्तियों पर बधाई स्वीकारें आदरणीया डा. प्राची जी
खेलते है
..सृजन-सृजन !....इन शब्दों के प्रति समर्पण व्यक्त करती हूँ| वास्तव मे सृजन नियोजन से नहीं होता वरन यह प्रफुल्लित मनोभावों का उत्पादनकारी परिणाम है| सृजन मे संलग्न सृजयिता की अंतरंगता को गहन शब्दों मे परिभाषित किया है आपने आ0 प्राची दीदी!
उत्कृष्ट रचना के रचे जाने के लिए आपको हार्दिक बधाई !!
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