छोटे शहर में ब्याही गईं, कुछ महानगर की लड़कियाँ।
जींस टॉप लेकर आईं, ससुराल में अपनी लड़कियाँ।।
बहुयें सभी बन गई सहेली, मुलाकातें भी होती रहीं।
जींस-टॉप में पहुँच गईं, एक उत्सव में बहू बेटियाँ॥
सास - ससुर नाराज हुए, पति देव बहुत शर्मिंदा हुए।
भिखारियों को घर पे बुलाए, साथ थी उनकी बेटियाँ।।
बड़ी देर तक समझाये फिर, जींस पेंट और टॉप दिये।
खुश हुये भिखारी और बोले, पहनेंगी हमारी बे़टियाँ।।
जींस पहन झोला लटकाये, घूम रहीं हैं युवा भिखारिन।
मुड़ - मुड़कर देखें सब कोई, वृद्ध युवक और युव़तियाँ।।
भीख माँगती जींस पहनकर, मनचले सीटी बजाते हैं।
पैसे ज़्यादा मिलने से, खुश रहतीं भिखारिन बेटियाँ।।
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-अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी(छत्तीसगढ़)
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय बड़े भाई , क्षमा कीजिएगा , व्यक्ति के पहनावे अथवा व्यक्तित्व में समय और काल के अनुसार परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है | और इस क्रिया में लिंग का कोई भेद नहीं रहा है | नहीं तो हम और आप आज भी अपना शशीर पत्ते और जानवर के चमड़े से ढक रहे होते | पुरुषो एवं लड़को का लड़कियों जैसे कान में बाली पहनना , ब्यूटी पार्लर जाना और सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग करना , धोती कुरता से बढ़ते बढ़ते अंग्रेजों की नक़ल - आयातीत परिधान पेंट शर्ट और जींस पहनना तो हमें स्वीकार है , पर स्त्रियों और " बेटियों " का नहीं , | यह तो हम पुरोषों की ही ओछी और रुग्ण मानसिकता का परिचायक है | जो हम कपड़ों में झाँक कर महिलाओं के स्वाभाव और वक्तित्व का आकलन करने की कोशिश करते हैं | आपकी यह रचना हास्य अथवा व्यंग के बदले व्यक्तिगत भड़ास जादा लगती है | साहित्य के दृष्टिकोण से भी समझना मुश्किल है की यह गद्य है अथवा पद्य , कविता है या अकविता , शब्दों और वाक्यों का विन्यास भी बहुत कमजोर है |
आ0 अखिलेश जी यह तो साहित्यिक मंच है । इस पर आपकी इस रचना ने किसी पहनावे विशेष को ही इंगित नहीं किया आपने वरन स्त्री वर्ग को भी इंगित किया है जो कि ठेस पहुंचा रहा है , मै नीचे कुछ लोगों को छोड़ कर सभी से सहमत हूँ । शायद आपकी रचना सुंदर संदेश देने मे नाकाम लग रही है ।
रचना के लिए नया विषय लिया है, खैर रचना के लिए और भी कई सामाजिक मुद्दे हो सकते थे जो कोई सार्थक संदेश देते| रचना का संदेश भी समझ नहीं आ रहा| क्या कहना चाहती है रचना? यदि हमारी बेटियाँ कुछ रिजेक्ट करती हैं तो भिखारियों की बेटियाँ कैसे उसके योग्य हो सकती हैं? वे भी तो बेटियाँ है न आखिर! खैर...
रचना के शीर्षक की बात की जाए तो "भिखारिन" कहेंगे या "जींस टॉप का विरोध"? यदि आप विरोध कर भी रहे है इसका तो लिंगभेद के समानुपात मे न करके सबके लिए करते तो शायद रचना व्यापक हो जाती|
सादर !!
आदरणीय आपकी इस रचना से मुझे बहुत निराशा हुई। ……।कथ्य ,शिल्प,भाव किसी भी स्तर से मुझे रचना नहीं पसंद आयी। क्षमा सहित। ।सादर
आदरणीय विजय मिश्र जी पोशाक बाजारू से आपका क्या तात्पर्य है ??
आदरणीय मीना पाठक जी की बात का समर्थन मैं भी करती हूँ ना जाने क्यों आपकी इस व्यंगात्मक रचना में पहनावे के मजाक की बू आ रही है, सच पूछो तो जितना बदन लड़कियों या नारियों का जींस टाप में ढका होता है उतना भारतीय नारी परिधान साडी में भी नहीं होता,समझ नहीं आता इस पहनावे को लेकर पुरुष वर्ग को इतनी आपत्ति क्यों है,दोष पहनावे में नहीं लोगों की सोच में है
आदरणीय अखिलेश जी आप ने जिन कपड़ो का मजाक बनाया है वही आज कल सभी लड़कियाँ पहनती हैं और खरीद कर भी हम और आप ही देते हैं फिर इतनी आपत्ति क्यों जींस टॉप से | क्षमा कीजियेगा आदरणीय मुझे अच्छा नही लगा आप का यूँ लड़कियों के पहनावे का मजाक बनाना ..
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