मौन के शव ?
बोलते चुपचाप
बात करते आप
रौंदते है मूक अन्तस को
बधिर होता है हाहाकार
दग्ध पर नहीं होते वो
ध्वंस लेता है फिर आकार
यही होता है प्रकृति में
भावनाओ की विकृति में
सतत क्रम सा बार बार
सभी है सहते उसे
और हाँ कहते उसे
निष्ठुर प्रेम !
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
अति उत्तम रचना आदरणीय गोपाल जी, बधाई स्वीकारें | सादर
waaaaaaaaaah gahan bhaavon kee sundr prastuti....viprit bhaav ke alnkaarik pryog is rachna kee jaan hain....
antim pankti pooree rachna ka saar ....kuch n kah ke bhee sab kuch kah gayee...bhut sundr...hmaaree dilee daad kabool farmaayen aa.Dr.Gopal Narain Shrivastav jee
ब्रजेश जी
आपके उत्साहवर्धन से आप्यायित हुआ i
बहुत बहुत धन्यवाद i
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
माननीया अनुपमा जी
मौन के शव - पर आपके प्रोत्साहन को धन्यवाद i
ऐसी रचनाओ पर प्रायशः लोग अधिक ध्यान नहीं देते i
आपको पुनश्च आभार i
गूढ अर्थ से भरपूर आपकी रचना निस्संदेह बेहद खूबसूरत है । आपको बधाई आदरणीय गोपाल नारायण जी ।
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