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***ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......***

ऐ सांझ ,तू क्यूँ सिसकती है .......

ऐ सांझ ..
तू क्यूँ सिसकती है //
अभी कुछ देर में ..
तिमिर घिर जाएगा …
तिमिर की चादर में …
हर रुदन छुप जाएगा //
रुदन …
उस क्षण का …
जब एक ….
किलकारी ने ….
अपनी चीख से ब्रह्मांड में ….
सन्नाटा कर दिया //
रुदन उस क्षण का ….
जब एक कोपल …
एक वहशी की वासना का ….
शिकार हो गयी //
रुदन उस क्षण का …..
जब दानव बना मानव ……
दरिंदगी की सारी हदें …..
पार कर गया //
रुदन उस क्षण का …..
जब एक पुष्प से …..
कोई छद्मवेशी मानव …..
कुकृत्य कर …..
मानवता को …..
रक्त रंजित कर गया //
हाँ,
ऐ साँझ
ये तो रुदन तो …..
वक्त की सुईयों के साथ ….
शायद ….
धीरे धीरे …..
शून्यता में लीन हो जाएगा //
लेकिन क्या कोई …
एक मोमबत्ती जलाकर ….
इस रुदन के विरुद्ध आवाज उठाएगा ?
क्या कोई …
इस दरिन्दे के नुकीले नाखूनों से ….
माँ ,बहन,बीवी,और बेटी के …..
पावन रिश्ते को ….
लहू लुहान होने से बचाएगा ??
हाँ !
एक एक मोमबत्ती हम सब को …
इस दरिंदगी को ….
जड़ से मिटाने के लिए ….
जलानी होगी //
हर चुनरी की ,,,,
लाज बचानी होगी //
तभी ,
हाँ तभी ,
ऐ सांझ तू सुहानी होगी //
ऐ सांझ तू सुहानी होगी ……..


सुशील सरना

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 782

Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 1:06pm

aa.Giriraj Bhandaaree jee rachna par aapke sneh ka haardik aabhaar

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 12:38pm

aa.Annnapuma bajpai jee rachna par aapkee aatmeey sneh ka haardik aabhaar

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 12:37pm

Dr.Gopal Narain Shrivastav jee aapkee aatmeey pratikriya ka haardik aabhaar

Comment by Shyam Narain Verma on November 30, 2013 at 11:49am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 9:11am

जिस तरह से कविता शुरू हुई, आगे जाकर चरमराकर ढह गई.कविता को एडिटिंग की जरूरत है! बाकी आप स्वयं विद्वान् हैं. ये मेरे विचार हैं, आपका सहमत होना जरूरी नहीं.

बहरहाल, इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

 


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 6:39am

सुन्दर सोच लिये आपकी इस रचना के लिये आपको बधाई , आदरणीय !!!!!!

Comment by annapurna bajpai on November 29, 2013 at 10:22pm

आदरणीय सुशील जी काफी अच्छी रचना है । बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 8:05pm

सुशील जी

देश को इस आग , इस मशाल और इस मोमबत्ती  की बहुत जरूरत है

आपका कथ्य निसंदेह बहुत सुन्दर है  i

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