For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाकिम निवाले देंगे

गाँव-नगर में हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे

 

सूख गयी आशा की खेती

घर-आँगन अँधियारा बोती

छप्पर से भी फूस झर रहा

द्वार खड़ी कुतिया है रोती

 

जिन आँखों की ज्योति गई है

उनको आज दियाले देंगे

 

सर्द हवाएँ देह खँगालें

तपन सूर्य की माँस जारती

गुदड़ी में लिपटी रातें भी

इस मन को बस आह बाँटती

 

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे

 

चूल्हे हैं अब राख झाड़ते

बासन भी सब चमक रहे हैं

हरियाई सी एक लता है

फूल कहीं पर महक रहे हैं

 

मासूमों को पता नहीं है

वादे और हवाले देंगे

 

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 1048

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 2:46pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 2:45pm

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 2:41pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार!

आपकी रचना अप्रतिम है! इसे आपने साझा किया इसके लिए आपका हार्दिक आभार!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 30, 2013 at 2:23pm

जय हो, जय हो आदरणीय आपकी बारंबार जय हो । बहुत ही बढि़या रचना है, क्‍या खबर ली है, यहां खबर भी ली गई, विवशता का भी चित्रण किया गया । जिस दिन मिलूंगा रसगुल्‍ले गिन-गिन कर पूरे दस खिलाउंगा, सादर

Comment by Meena Pathak on November 30, 2013 at 2:09pm

शानदार प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी | सादर 

Comment by Sushil Sarna on November 30, 2013 at 1:26pm

गाँव-नगर में हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे......gazab aa.Brijesh jee rachna ka aarambh hee vartmaan vyavstha kee pol khol rahaa hai....smpoorn rachna jis uddeshy ko lekar chalee hai ant tak uska nirvaah kiya hai....saral bhaasha, sundr shabd chayan iskee vishestha hai....is yatharthparak rachna kee sundr prastuti ke liye haardik haardik badhaaee aa.Brijesh Neeraj jee


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 30, 2013 at 11:53am

सूख गयी आशा की खेती

घर-आँगन अँधियारा बोती

छप्पर से भी फूस झर रहा

द्वार खड़ी कुतिया है रोती

 

जिन आँखों की ज्योति गई है

उनको आज दियाले देंगे

 वाह्ह्ह लाजबाब प्रस्तुति ब्रिजेश जी ,जानदार व्यंगात्मक तमाचा राजनीति के ऊपर ,वोट के वक़्त कितने ढपोल शंख बजते हैं सब को पता है,ढेरों बधाई इस प्रस्तुति पर  ,इस प्रस्तुति को पढ़ कर अपनी लिखी एक कविता की  याद आई ---

सूखे अधरों पर मुस्कान

आँखों में रंगत आई

जब रसोई से आज,

धुआं उठता दिया दिखाई 

काले पतीले में माँ

चमचा आज चलाएगी

मांग के लाई थी  जो चावल,

उनसे खीर बनाएगी 

भूख से सिकुड़ी आँतों में

जब थोड़ी आस बंध आई ,

लार  टपकाते मरियल कुत्ते

ने भी पूँछ हिलाईI

सूखेगा आज टपकता छप्पर ,

गीला आटा भीगा बिस्तर

देखो देखो सूरज ने अब,

काली चादर हटाई

सूखे अधरों पर मुस्कान

आँखों में रंगत आई I

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 11:42am

आदरणीय सारथि जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 30, 2013 at 11:41am

आदरणीय श्याम जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Saarthi Baidyanath on November 30, 2013 at 11:41am

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे....लाजवाब लाजवाब ! आदरणीय बृजेश जी , बेहद कमाल की रचना ! बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service