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मेरे किरदार पे वो शक जताता है
बिना ही बात वो तेवर दिखाता है
नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी
मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है
बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर
मेरा ये दिल उसे अपना बताता है
*निवाले फेंककर दो वक़्त के मुझ पर
मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है
मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल
मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है
*सशोधित
संजू शाब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत शानदार!! रिश्तों की अहमियत को दरकिनार करने वाले चरित्र पर सीधे- सीधे प्रहार करते हुए अशआर ,जैसे अंगार की स्याही में डुबो कर लिखे हों वाह ,गीतिका जी की बात का समर्थन करुँगी ,बहुत बहुत बधाई इस मुसलसल ग़ज़ल पर संजू जी
बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर
मेरा ये दिल उसे अपना बताता है----बहुत सुन्दर
वाह वाह आदरणीया संजू जी बहुत ही शानदार ग़ज़ल क्या कहने बहुत बहुत बधाई आपको
मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल
मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है .. इस शेर के लिए विशेष तौर से दाद कुबूल फरमाएं.
क्या बात है बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीया संजू जी ./.......दिली दाद हाजिर है
लेकिन ये कौन है जो
जिसे दिल आपका अपना बताता है
वही सम्मान की धज्जी उड़ाता है
वाह वाह संजू जी खुबसूरत गजल अन्तस मन की व्यथा उकेरती हुई ,हार्दिक बधाई
वाह संजू जी आपकी इस ग़ज़ल में आपका अलग ही रूप देखने को मिला, बहुत खूब, बहुत बहुत बधाई आपको इस ग़ज़ल के लिये
आदरणीया संजू जी , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , हर शे र कामयाब हैं , !!! आपको तहे दिल से बधाई !!!!!
बाक़ी आदरणीया गातिका जी ने कह दिया है , तदानुसार सुधार कर लें !!!!
नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी
मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है.............वाह! बहुत खूब, कटाक्ष वार करता हुआ शेर
सच! एक से बढ़कर एक शेर, लाजवाब गजल पर दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीया संजू जी
मेरे किरदार पे वो शक जताता है
बिना ही बात वो तेवर दिखाता है.... अर्थपूर्ण मतला, जिसकी पहुँच सीधे आत्मा को है!
बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर
मेरा ये दिल उसे अपना बताता है ......................अहा! खूब निभाया है आपने अपनेपन को| इस शेर पर दिल ओ जान से कुर्बान होने को जी चाहता है!
निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर
मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है ......................जिस शिद्दत से इस शेअर का जन्म हुआ है, उसकी तह मै बहुत इतमीनान से टटोल आई हूँ| पहले मिसरे मे की के स्थान पर के का होना लग रहा है|
मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल
मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है .................... एक दोयम चरित्र का आंकलन आपने बहुत खूब किया है|
वैसे हर घड़ी हर पल का प्रयोग एक साथ हो सकता है क्या?
उलझे अंतस को एक परिभाषा देती हुयी निहायत बहुत खूबसूरत और गंभीर गज़ल हुयी है! इस रचना के निर्माण पर आपको हार्दिक बधाई देती हूँ और आपको आभार भी व्यक्त करती हूँ, आपने इसे हमसे साझा किया!!
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