(२१२२ १२१२ २२)
एक बीमार की दवा जैसे
तुम मेरे पास हो ख़ुदा जैसे |
साँस-दर-साँस ज़िन्दगी का सफ़र
और तुम आखिरी हवा जैसे |
उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे |
रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे |
आपकी मुस्कुराहटों की कसम
हो गया जन्म दूसरा जैसे |
- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीया डॉ. प्राची जी !
सुन्दर ग़ज़ल कही है आशीष जी
उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे |
रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे |
ये दो शेर तो बस लाजवाब हुए हैं
बहुत बहुत बधाई
बहुत-बहुत शुक्रिया भाई अरुण जी |
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी |
बहुत-बहुत शुक्रिया भाई तपन जी | :))
आदरणीय आशीष भाई , आजवाब गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!
वाह भाई वाह बहुत ही शानदार ग़ज़ल सभी अशआर बहुत पसंद आये मजा आ गया भाई दिली दाद कुबूल फरमाएं
शुक्रिया गीतिका जी !
शुक्रिया भाई शिज्जू जी | कशम को कसम कर लिया है ! :))
शुक्रिया डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी !
सलिल जी
आपको ग़ज़ल के लिए मुबारकवाद i
बहुत अच्छी ग़ज़ल है भाई आशीष जी तमाम अशआर अच्छे हुये हैं बधाई आपको। बस कशम तो कसम कर लीजिये
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