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(२१२२ १२१२ २२)

एक बीमार की दवा जैसे
तुम मेरे पास हो ख़ुदा जैसे |

साँस-दर-साँस ज़िन्दगी का सफ़र
और तुम आखिरी हवा जैसे |

उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे |

रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे |

आपकी मुस्कुराहटों की कसम
हो गया जन्म दूसरा जैसे |

- आशीष नैथानी 'सलिल'
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 4, 2013 at 10:15pm

आपका तहेदिल से शुक्रिया आदरणीया डॉ. प्राची जी  !

Comment by ram shiromani pathak on December 4, 2013 at 9:00pm
वाह भाई वाह मज़ा आ गया। …। बहुत बहुत बधाई आपको

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 4, 2013 at 8:29pm

 सुन्दर ग़ज़ल कही है आशीष जी 

उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे |

रूह ! बेकार है बदन तुझ बिन
इक लिफ़ाफ़ा है बिन पता जैसे |

ये दो शेर तो बस लाजवाब हुए हैं 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 4, 2013 at 7:58pm

बहुत-बहुत शुक्रिया भाई अरुण जी |
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी |
बहुत-बहुत शुक्रिया भाई तपन जी | :))

Comment by Tapan Dubey on December 4, 2013 at 6:45pm
उनकी आँखों में बस मेरा चेहरा
आइनों से हो सामना जैसे | क्या बात क्या बात वाह वाह

आपकी मुस्कुराहटों की कसम
हो गया जन्म दूसरा जैसे | वाह वाह

बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 6:23pm

आदरणीय आशीष भाई , आजवाब गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 5:17pm

वाह भाई वाह बहुत ही शानदार ग़ज़ल सभी अशआर बहुत पसंद आये मजा आ गया भाई दिली दाद कुबूल फरमाएं

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 4, 2013 at 12:18pm

शुक्रिया गीतिका जी !
शुक्रिया भाई शिज्जू जी | कशम को कसम कर लिया है !  :))
शुक्रिया डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 11:03am

सलिल जी

आपको ग़ज़ल के लिए मुबारकवाद i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 4, 2013 at 10:44am

बहुत अच्छी ग़ज़ल है भाई आशीष जी तमाम अशआर अच्छे हुये हैं बधाई आपको। बस कशम तो कसम कर लीजिये

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