बह्र : मुतकारिब मुसम्मन सालिम
तमन्ना यही एक पूरी खुदा कर,
जमी ओढ़ लूँ मैं फलक को बिछा कर,
शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,
बढ़ा हौसला दे मेरी झोपड़ी का,
बुजुर्गों के आशीष की छत बना कर,
अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,
सितारों भरी एक दुनिया बसा रब,
अँधेरे का सारा जहाँ अब मिटा कर..
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर/////////////आदरणीय अरुण भाई बहुत सुन्दर ग़ज़ल, हार्दिक बधाई आपको
अमन शान्ति का शुद्ध वातावरण हो,
मुहब्बत पिला दे शराफत मिला कर,...........आमीन!
शुकूँ से भरी नींद अँखियों को दे दे,
दुआओं तले माँ के बिस्तर लगा कर,........shaandaar
bahut hi khoob gazal hai .......
आदरनीय अरुन अनंत भाई , उम्दा गल कही है , सभी शे र सुन्दर हुये हैं !!! आपको हार्दिक बधाई !!!!
एक सलाह यूँ ही सा - फ़लक ओढ़ लूँ मै ज़मीं को बिछा कर - , अगर कहें तो कैसा रहे !!! और अँधेरे की जगह अँधेरों कैसा लगेगा !!!!
अरुण जी ..बहुत ही बढ़िया अभिलाषा को व्यक्त किया है आपने अपनी ग़ज़ल के माध्यम से ..इश्वर आपकी मनोकामना पूरी करे,,,मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ....सादर
अनंत जी
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुयी है i शुभ कामनाये i
वाह अरुण क्या बात हर अशआर जबर्दस्त
हार्दिक बधाई
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