१.
मात पिता तो बोझ सम, आपन पूत सुहाय ।
जियबे पर ...पानी नही, मरे गया लइ जाय ॥
२.
धूल संस्कृति फाँकती, ....संस्कार हैं रोय ।
अंधी दौड़ विकास की, मानो सबकुछ होय॥
३.
है विवेक तो तनिक नहिं, शब्दन की भरमार।
अधकचरा से ज्ञान पर,...... हिला रहे संसार॥
४.
ज्ञान समुन्दर उर बसै, फिर भी भटकय जीव।
मन ना बस में करि सकै, ..तन जैसे निर्जीव॥
५.
देख मनुष का गर्व यों, ..सोच रहे भगवान ।
धरा नरक बन जाय जो, सारे होयँ समान ॥
६.
घर की सीमा में रहै, .लजवंती कहलाय ।
लांघि गई जो देहरी, कुलटा वो कहलाय ॥
७.
धरम नाम की लूट है, ....धरम बिकाऊ हाय ।
नफरत की इक आग में, प्रेम सिसकता हाय ॥
८.
साईं जितना दीजिये, भूख बढ़त ही जाय ।
भूखा भूखा ही ...रहे, जब देखो तब हाय ॥
९.
मानुष अति ज्ञानी भया, मन का मोल लगाय ।
निज स्वारथ को साध के, खुद पर है इतराय ॥
१०.
अति शक्कर घातक बड़ी, रोग होय .....मधुमेह ।
मधुर वचन अति से बचो, खतरनाक अति नेह ॥
११.
साँच न कड़्वा बोलिये, घिरणा जो उपजाय।
वाणी के परताप से, सुख या दुख बढ़ि जाय॥
१२.
सतकरमन से ताप से, जनम सफल होइ जाय ।
मूरख नाशै जिंदगी, कुकरम में .......रहि जाय ॥
१३.
जनता में आक्रोश बहु, गरजै मेघ समान।
शासन से लड्डू मिलै, भूले तीर कमान ॥
१४.
आपन दुख अति विकट है, पीर सही ना जाय ।
देख परायी ........चोट को, मंद-मंद मुसकाय ॥
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
हेमंत जी आभार ..........बस एक प्रयास है अभी सीख ही रहे है हम .........शुभं
सुन्दर दोहे ,सामयिक दोहे बधाई आ. किरण जी
एक से बढ़कर एक सुंदर संदेशप्रद दोहे, बधाई स्वीकारें आदरणीया किरण जी
आदरणीया किरण आर्या जी ,दोहों के माध्यम से बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..... हार्दिक बधाई आपको ////// दोहे और भी सुन्दर हो जायेंगे कृपा कर थोडा और समय दीजियेगा। ……सादर
आपन दुख अति विकट है, पीर सही ना जाय ।
देख परायी ........चोट को, मंद-मंद मुसकाय ॥.. बहुत सुन्दर
बधाई स्वीकारे
सुन्दर दोहों के लिये हार्दिक बधाई , दूसरे दोहे मे मात्रा फिर से देख लें !!!!
सुंदर दोहे ..सादर बधाई
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