उदास सी थी वो सहर
खामोश स्तब्ध शाम थी
हवा भी कुछ रुकी सी थी
राहों की वो विरानियाँ
आँख में गई ठहर.....
एहसासों की एक लहर
यादों के नर्म बिछोने सी
विरह के लिए खिलोने सी
इश्क की रवानियाँ
रूह को सहलाए हर पहर.....
नदी से निकले एक नहर
अपनी ही धुन में बहती सी
विरक्ति को हाँ सहती सी
छोड़ गई निशानियाँ
दर्द बन गया जहर......
तुझ बिन सूना दिल का शहर
पलकें नम झुकी सी थी
आहटें खटकती सी थी …
Added by Kiran Arya on December 11, 2013 at 2:30pm — 1 Comment
१.
मात पिता तो बोझ सम, आपन पूत सुहाय ।
जियबे पर ...पानी नही, मरे गया लइ जाय ॥
२.
धूल संस्कृति फाँकती, ....संस्कार हैं रोय ।
अंधी दौड़ विकास की, मानो सबकुछ होय॥
३.
है विवेक तो तनिक नहिं, शब्दन की भरमार।
अधकचरा से ज्ञान पर,...... हिला रहे संसार॥
४.
ज्ञान समुन्दर उर बसै, फिर भी भटकय जीव।
मन ना बस में करि सकै, ..तन जैसे निर्जीव॥
५.
देख मनुष का गर्व यों, ..सोच रहे भगवान ।
धरा नरक बन जाय जो, सारे होयँ समान…
Added by Kiran Arya on December 9, 2013 at 1:00pm — 17 Comments
मायूसियों ने आज फिर दस्तक दी
खयालो के बंद दरवाजो से निकल
मन के आँगन में बिखरने को
बेताब सी मायूसियाँ
लेकिन आस की एक लौ
जिससे रोशन है दिल की बस्तियाँ
मुस्कुरा के बोली बुझने ना देना मुझे
जीवन में आयेंगे कठोर थपेड़े
वक़्त की आंधियों में
हमने मिटती देखी हैं
इन थपेड़ो की गिरफ्त में कई हस्तियाँ
जिंदगी की उलझनों से…
Added by Kiran Arya on September 13, 2012 at 1:30pm — 20 Comments
हमको यह गुमा था की हम है दिलो के खरेदार…
ContinueAdded by Kiran Arya on January 20, 2012 at 3:19pm — 4 Comments
तुम्हारी हर आजमाइश के आगे हम सर झुकाते चले गए
सोचा यह आजमाइश ही सच्चे प्रेम की निशानी है
इक आजमाइश पर उतरकर खरे खुश होने से पहले ही
तुम एक और आजमाइश संग खड़े मुस्काते नज़र आये
हम फिर जुट गए उस पर खरा उतरने की जुगत में
जब होने लगा यकीन तुम्हे प्यार पे मेरे आजमयिशो से परे
तुम लगे सोचने ख़त्म करने को सिलसिला आवाजाही का
तब तक मन का जीव मुक्त हो चुका था हर आजमाइश से
और सिर्फ खुली हुई आंखें मेरी रह गई बैचैनी का मंज़र लिए
पूछती एक ही ही…
ContinueAdded by Kiran Arya on January 17, 2012 at 10:59am — 5 Comments
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