“पापा ! टीचर ने कहा है कि फीस जमा करवा दो, नहीं तो इस बार नाम अवश्य काट दिया जाएगा।"
“अजी सुनते हो ! बनिया आज फिर पैसे मांगने आया था।”
“अरे बेटा ! कई दिन हो गए दवाई खत्म हुए, अब तो दर्द बहुत बढ़ता जा रहा है, आज तो दवाई ला दो।”
ये सभी आवाज़ें उसके मस्तिष्क पर हथोड़े की भाँति चोट कर रही थीँ।
मगर उसके दिल में एक नई कविता का खाका जन्म ले रहा था।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
वाह क्या बात है ? सुंदर और गूढ अर्थ से परिपूर्ण आपकी लघु कथा , बधाई एवं शुभकामनायें आपको ।
आदरणीय कल्पना रामानी जी,
नमस्कार। लघुकथा पर आपकी उपस्थिती प्रतिक्रिया व आशीर्वाद पाकर बहुत उत्साहित हूं। मंच को आप सरीखे साहित्यकारो की छत्रछाया सदैव मेरे जैसे नौसीखिए को भी कलम चलाने पर उत्साहित करती है। आपका आशीर्वाद भविष्य में भी बना रहेगा इसी आस में ....... धन्यवाद ।
एक कविमन के अंतर्द्वंद्व को कम शब्दों में खूबसूरती से अंकित किया है आपने, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय रविशंकर जी
आदरणीय डाॅ. प्राची जी,
सादर । आपने मेरी लघुकथा पढ़ी और इसके मर्म को पहचाना, आपका धन्यवाद। आपसे बधाई प्राप्त करना मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है क्योंकि मैं आपकी कलम की धार बहुत बड़ा “फैन” हूं । धन्यवाद ।
ऐसी ही होती है एक कवि हृदय की उधेड़बुन.. नियति के थपेड़े उसके अन्दर के लेखक को नित उर्वरा बनाते रहते हैं.
इस सुन्दर सुगठित लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी.
ओपन बुक्स के सभी सहृदय गुणीजन पाठकों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। इस मंच का मैं बहुत शुक्रगुजार हूं, जिसने मुझे फिर से लिखने का हौसला प्रदान किया। मैने अपनी लघुकथा पंजाबी में वर्ष 1989 में लिखी थी जो ‘मिन्नी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित भी हुई थी। उसके बाद मेरी कई लघुकथाएं विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुई। इसके बाद कुछ कारणों से मेरा लिखना छूट गया। मेरे परम आदरणीय, गुरू समान, बड़े भाई श्री योगराज प्रभाकर जी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से मैने 2011 फिर लिखना शुरू किया। और उन्ही के मार्गदर्शन से ही मैं ओपन बुक्स से जुड़ा। इस मंच पर तकरीबन दो साल से प्रकाशित रचनाएं पढ़ रहा हूं। इतने ज्ञानी व गुणीवानों के सामने लिखने का हौसला नहीं कर पा रहा था परन्तु भाई योगराज जी, गणेश बागी जी व सौरभ जी की प्रेरणा से लिखने का दुस्साहस किया। मैं अपने दिल से सभी का धन्यवाद करता हूं जिनकी बदौलत फिर से लिखना शुरू हुआ। धन्यवाद ओपन बुक्स आॅनलाइन।
आदरणीय कुन्ती जी,
सादर । आपका शुभआशीर्वाद पाकर धन्य हूं। ‘एक और एकलव्य’ के बाद इस लघुकथा हेतु आपकी टिप्पणी का इंतजार था। शायद अपने प्रयास में सफल रहा हूं। धन्यवाद ।
श्रद्धेय सौरभ भाई
आपकी सृजनात्मक टिप्पणी तो आॅक्सीजन का काम करती है, और यह आपकी ही हौसला अफजाई है कि लिखने का प्रयास कर रहा हूँ, धन्यवाद ।
आदरणीय नीलेश भाई,
कलम के किसी भी मजदूर को इससे अधिक कुछ और चाहिए भी नहीं।
आदरणीय डाॅ. आशुतोष जी,
आप जैसे महानुभावो की सार्थक टिप्पणीया सदैव हौसला बढ़ाती है और भविष्य में और अधिक प्रयास करने का उत्साह देती है। धन्यवाद ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online