For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गर्भाधान (लघुकथा) - रवि प्रभाकर

“पापा ! टीचर ने कहा है कि फीस जमा करवा दो, नहीं तो इस बार नाम अवश्य काट दिया जाएगा।"
“अजी सुनते हो ! बनिया आज फिर पैसे मांगने आया था।”
“अरे बेटा ! कई दिन हो गए दवाई खत्म हुए, अब तो दर्द बहुत बढ़ता जा रहा है, आज तो दवाई ला दो।”

ये सभी आवाज़ें उसके मस्तिष्क पर हथोड़े की भाँति चोट कर रही थीँ।
मगर उसके दिल में एक नई कविता का खाका जन्म ले रहा था।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1273

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by annapurna bajpai on December 17, 2013 at 10:31pm

वाह क्या बात है ? सुंदर और गूढ अर्थ से परिपूर्ण आपकी लघु कथा , बधाई एवं शुभकामनायें आपको । 

Comment by Ravi Prabhakar on December 17, 2013 at 4:10pm

आदरणीय कल्पना रामानी जी,
नमस्कार। लघुकथा पर आपकी उपस्थिती प्रतिक्रिया व आशीर्वाद पाकर बहुत उत्साहित हूं। मंच को आप सरीखे साहित्यकारो की छत्रछाया सदैव मेरे जैसे नौसीखिए को भी कलम चलाने पर उत्साहित करती है। आपका आशीर्वाद भविष्य में भी बना रहेगा इसी आस में ....... धन्यवाद ।

Comment by कल्पना रामानी on December 16, 2013 at 11:56pm

एक कविमन के अंतर्द्वंद्व  को कम शब्दों में खूबसूरती से अंकित किया है आपने, बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय रविशंकर जी

Comment by Ravi Prabhakar on December 16, 2013 at 5:35pm

आदरणीय डाॅ. प्राची जी,
सादर । आपने मेरी लघुकथा पढ़ी और इसके मर्म को पहचाना, आपका धन्यवाद। आपसे बधाई प्राप्त करना मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है क्योंकि मैं आपकी कलम की धार बहुत बड़ा “फैन” हूं । धन्यवाद ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 9:19am

ऐसी ही होती है एक कवि हृदय की उधेड़बुन.. नियति के थपेड़े उसके अन्दर के लेखक को नित उर्वरा बनाते रहते हैं.

इस सुन्दर सुगठित लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी.

Comment by Ravi Prabhakar on December 11, 2013 at 3:05pm

ओपन बुक्स के सभी सहृदय गुणीजन पाठकों का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। इस मंच का मैं बहुत शुक्रगुजार हूं, जिसने मुझे फिर से लिखने का हौसला प्रदान किया। मैने अपनी लघुकथा पंजाबी में वर्ष 1989 में लिखी थी जो ‘मिन्नी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित भी हुई थी। उसके बाद मेरी कई लघुकथाएं विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुई। इसके बाद कुछ कारणों से मेरा लिखना छूट गया। मेरे परम आदरणीय, गुरू समान, बड़े भाई श्री योगराज प्रभाकर जी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन से मैने 2011 फिर लिखना शुरू किया। और उन्ही के मार्गदर्शन से ही मैं ओपन बुक्स से जुड़ा। इस मंच पर तकरीबन दो साल से प्रकाशित रचनाएं पढ़ रहा हूं। इतने ज्ञानी व गुणीवानों के सामने लिखने का हौसला नहीं कर पा रहा था परन्तु भाई योगराज जी, गणेश बागी जी व सौरभ जी की प्रेरणा से लिखने का दुस्साहस किया। मैं अपने दिल से सभी का धन्यवाद करता हूं जिनकी बदौलत फिर से लिखना शुरू हुआ। धन्यवाद ओपन बुक्स आॅनलाइन।

Comment by Ravi Prabhakar on December 11, 2013 at 2:51pm

आदरणीय कुन्ती जी,
सादर । आपका शुभआशीर्वाद पाकर धन्य हूं। ‘एक और एकलव्य’ के बाद इस लघुकथा हेतु आपकी टिप्पणी का इंतजार था। शायद अपने प्रयास में सफल रहा हूं। धन्यवाद ।

Comment by Ravi Prabhakar on December 11, 2013 at 2:48pm

श्रद्धेय सौरभ भाई
आपकी सृजनात्मक टिप्पणी तो आॅक्सीजन का काम करती है, और यह आपकी ही हौसला अफजाई है कि लिखने का प्रयास कर रहा हूँ, धन्यवाद ।

Comment by Ravi Prabhakar on December 11, 2013 at 2:46pm

आदरणीय नीलेश भाई,
कलम के किसी भी मजदूर को इससे अधिक कुछ और चाहिए भी नहीं।

Comment by Ravi Prabhakar on December 11, 2013 at 2:45pm

आदरणीय डाॅ. आशुतोष जी,
आप जैसे महानुभावो की सार्थक टिप्पणीया सदैव हौसला बढ़ाती है और भविष्य में और अधिक प्रयास करने का उत्साह देती है। धन्यवाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Nov 17
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Nov 17

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service