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लघुकथाः कौआ (रवि प्रभाकर)

कौआ आज फिर प्यासा था। लेकिन अब उसे हर हर रोज़ कंकड़ पत्थर इकट्ठे करते हुए बहुत कष्ट होने लगा था. वह इस रोज़ रोज़ के संघर्ष से मुक्ति चाहता था। फिर एक दिन अचानक ही उसने भगवे वस्त्र धारण कर लिए, माथे पर लंबा सा तिलक लगाया एक बड़ी सी स्टेज सजा कर ‘कांव-कांव’ करने लगा। देखते ही देखते अनगिनत लोग उसके अनुयायी बन उसकी जय जयकार करने लगे । अब वह सयाना कौआ बड़े आराम से दिन भर ‘कांव-कांव’ करता, क्योंकि उसकी ‘भूख’ व ‘प्यास’ का जीवन भर के लिए जुगाड़ हो चुका था।

मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 12:49pm

यथार्थ गहन अर्थप्रधान लघुकथा 

हार्दिक बधाई आ० रवि प्रभाकर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 3:45am

वाह वाह वाह .. अनुज रविजी.. ! क्या सटीक निशाना लगाया है आपने !
इस अत्यंत सफल लघुकथा पर हृदय से बधाई स्वीकारें. मन झूम गया है. बहुत खूब !

वैसे, वो कौआ तनिक जल्दिया गया. अगर वो भगवा ओढ़ने और मंच सजाने की जगह इस दिसम्बर मास की सुबह-सुबह कैरोल्स गाता रहता और देर शाम गये सुसज्ज मंच से माइक पर दिव्य-दृष्टि दे पाने का सुप्रचार किया करता, तो शायद उसकी भूख-प्यास की ही नहीं उसकी पीढियों के जीने की व्यवस्था होजाती. .. हा हा हा..
ऐसों का तो पूरा कॉर्पोरेट काम करता है ! उस लिहाज से भगवाधारी कौए बेचारे बहुत पिछड़े हैं ! ..   :-))))
शुभ-शुभ

Comment by annapurna bajpai on December 19, 2013 at 12:54pm

वाह !! आ0 रवि प्रभाकर जी बड़ी सुघडता से आपने प्रस्तुत की है कौवे की कांव कांव । बधाई इस लघु कथा के लिए । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 19, 2013 at 8:41am

वाह ! इन्सान की नादानी पर कौवे की बुद्धिमानी भारी पड़ गई, बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय रवि जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by vandana on December 19, 2013 at 6:44am

बहुत खूब आदरणीय रवि सर बेहतरीन लघुकथा 

Comment by AVINASH S BAGDE on December 18, 2013 at 11:32pm

वाह! क्या खूब लिखा है, कौवे की बुद्धिमानी ..आज  ka कौआ !!!

Comment by Priyanka singh on December 18, 2013 at 10:19pm

आज का सच ......कम में ज्यादा कह दिया आपने..... बधाई सर 

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 6:12pm

क्या खूब.... वाह!!!

आदरणीय रवि भाई जी सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2013 at 10:07am
सुन्दर लघुकथा हेतु बधाई.............

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 18, 2013 at 8:32am

आदरणीय रवि भाई , ढ़ोंगी साधुओं की अच्छी खिचाई की आपने , सुन्दर लघु कथा के लिये बधाई ।

वैचारिक रूप से केवल भगवा रंग के ढोंगियों पर निशाना बांधने के खिलाफ हूँ , जब ये  हर वर्ग , हर रंग के कपड़े पहनने वाले ढोंगी कर रहे हों । जरा सोच के देखियेगा ॥ शायद मै सही लगूँ ॥

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