For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राह मे दुश्वारियां थीं जब चले थे घर से हम ( गज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122  2122   2122  212

सिलसिले उनके छिपे, कांटो से भी मिलते गये 

फिर भी ऐसा क्यों हुआ वो फूल सा खिलते गये

 

राह मे दुश्वारियां थीं जब चले थे घर से हम

बिन रुके चलते रहे तो रास्ते मिलते गये 

 

हम भी फौलादी पकड़ रखते थे अपनी बात पर   

प्यार से हमको हिलाया और हम हिलते गये    

 

या तो जादू था किसी का या किसी का ख़ौफ़ था

बोलने वाले सभी के होंठ क्यों सिलते गये  

 

चीज़ क्या है प्यार परवाने बतायेंगे सही

जो शमाँ के पास आये, आग में मिलते गये

लौट के आये  तो पाये कुछ नये ही शख़्स उनमें       

वो सभी जो ख़ुद के भीतर ख़ुद से ही मिलते गये 

***************************************            

मौलिक एवँ अप्रकाशित    ( संशोधित )        

 

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 14, 2013 at 7:49am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , गज़ल को आपका आशीर्वाद मिला , बहुत खुशी हुई , आपका हार्दिक आभार !!!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 14, 2013 at 7:48am

आदरणीया महिमा श्री जी , गज़ल की सराहना  कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!

Comment by vijay nikore on December 14, 2013 at 12:28am

बहुत उम्दा गज़ल है। बधाई, आदरणीय भाई।

Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2013 at 10:04pm

हम भी फौलादी पकड़ रखते थे अपनी बात पर   

प्यार से हमको हिलाया और हम हिलते गये    

लौट के आये  तो उनमें  भी नया ही शख़्स था    

वो सभी जो ख़ुद के भीतर ख़ुद से ही मिलते गये ....वाह वाह .. बेहद   उम्दा .. बहुत -२ बधाई आ. गिरिराज जी

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 13, 2013 at 9:50pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 13, 2013 at 9:33pm

आदरणीय गिरिराज जी, बहुत लाजवाब गजल , यह शेर बहुत खास हुए दिली दाद कुबूल कीजिये

राह मे दुश्वारियां थीं जब चले थे घर से हम

बिन रुके चलते रहे तो रास्ते मिलते गये 

 

हम भी फौलादी पकड़ रखते थे अपनी बात पर   

प्यार से हमको हिलाया और हम हिलते गये    

 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 13, 2013 at 8:39pm

आदरणीय सन्दीप भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!!!!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2013 at 8:22pm

या तो जादू था किसी का या किसी का ख़ौफ़ था

बोलने वाले सभी के होंठ क्यों सिलते गये 
//////////waah waah sir ji .............बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने .....ढेरों दाद क़ुबूल करें जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 13, 2013 at 8:10pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , !!! आपको गज़ल पसन्द आयी तो मेरा गज़ल कहना सफल हुआ !!!! सरहाना के लिये आपका आभार !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 13, 2013 at 8:09pm

आदरणीय नीलेश भाई , गज़ल की  सराहना के लिये आपका शुक्रिया !!!! आपने सही कहा है , मिलते,का कई बार उपयोग मेरी कमी ही बता रही है , मज़ा भी कम हो रहा है , मै स्वीकार करता हूँ !!! दर असल ये मेरी बहुत पुरानी गज़ल है , जब मै बह्र नही जानता था , काफिये मे इता दोष भी था , सुधारते सुधारते थक गया , तो बह्र ठीक करके पोस्ट कर दिया !!! आपका पुनः आभार !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
5 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
6 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
6 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service