तुम ही कहो अब
क्या मैं सुनाऊँ
सरगम के सुर
ताल हैं तुम से
सारी घटाएँ
बहकी हवाएँ
फागुन की हर
डाल है तुमसे
तुम ही कहो .......
तुम बिन अँखियन
सरसों फूलें
रीते सावन
साल हैं तुमसे
तेरी छुअन से
फूली चमेली
शारद की हर
चाल है तुमसे
तुम ही कहो .......
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुंदर मन मोहक रचना.सादर
Rajesh ji, The Title of that poem is ''Ode on a Grecian Urn'' by John Keats (1795–1821).
आपका हार्दिक आभार अतुल जी । कीट्स की उस कविता का शीर्षक बता देते तो यादें ताजा हो जाती, यह अकिंचन भी अंग्रेजी साहित्य का विद्यार्थी रहा है ।
राजेश जी प्रकृति की सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई। अनायास ही बहुत दिनो पहले पढ़ी कीट्स की कविता की कुछ पंक्तिया स्मरण हो आईं- 'Heard melodies are sweet, but those unheard Are sweeter; therefore, ye soft pipes, play on; Not to the sensual ear, but, more endeared, Pipe to the spirit dities of no tone.' लगा जैसे वर्ड्सवर्थ और कीट्स को दोबारा गद्य में पढ़ रहा हूँ | अति सुन्दर!
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