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कहा कब कि दुनिया ये ज़न्नत नहीं है

तुम्हे पा सकें ऐसी किस्मत नहीं है //1//

मोहब्बत को ज़ाहिर करें भी तो कैसे

पिघलने की हमको इजाज़त नहीं हैं //2//

तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है. //3//

बहुत सब्र है चाहतों में तुम्हारी

नज़र में ज़रा भी शरारत नहीं है //4//

सुलगती हुई आस हर बुझ गयी, पर

हमें आँधियों से शिकायत नहीं है //5//

मौलिक और अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 10:01pm

ग़ज़ल की सराहना कर लेखन को मान देने और उत्साहवर्धन करने के लिए सादर आभार आदरणीया कुंती जी

Comment by SALIM RAZA REWA on December 20, 2013 at 9:52pm

प्राची जी

खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारक हो //

Comment by umesh katara on December 20, 2013 at 7:56pm

खूब सूरत अन्दाजे बयां वाहहहहहहहहहहह वाहहहहहहहहहह
तो वादों की जानिब कदम क्यों बढायें
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है---शानदार
वाहहहहहहहह 

Comment by vijay nikore on December 20, 2013 at 3:47pm

खूबसूरत गज़ल ... खयाल-बुलन्दी के लिए बधाई।

Comment by coontee mukerji on December 20, 2013 at 2:03pm

मोहब्बत को ज़ाहिर करें भी तो कैसे

पिघलने की हमको इजाज़त नहीं हैं //2//.............कहने का अंदाज़ कितना खूबसूरत है.

तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है. //3//...........बहुत सुंदर.

प्राची जी हर विधा में कमाल है.सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 12:26pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय निलेश शिवगांवकर जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 12:25pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी 


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Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 12:25pm

ग़ज़ल आपको पसंद आयी...बहुत बहुत आभार आ० अजय शर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 12:19pm

आदरणीया कल्पना रामानी जी 

ग़ज़ल पर आपकी प्रोत्साहित करती सराहना के लिए सादर धन्यवाद 


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Comment by Dr.Prachi Singh on December 20, 2013 at 12:18pm

आदरणीय तपन दुबे जी 

अशआर आपको पसंद आये और मुखर सराहना मिली \

धन्यवाद 

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