दर्द का सावन ……
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दर्द का सावन तोड़ के बंधन
नैन गली से बह निकला
मुंह फेर लिया जब अपनों ने
तो बैगानों से कैसा गिला
जो बन के मसीहा आया था
वो बुत पत्थर का निकला
मैं जिस को हकीकत समझी थी
वो रातों का सपना निकला
है रिश्ता पुराना कश्ती का
सागर के किनारों से लेकिन
जब दुश्मन लहरें बन जाएँ
तो कश्ती से फिर कैसा गिला
जन्मों जन्मों के वादे थे
इक दूजे का साथ निभाने के
दो चार कदम चल मुंह फेर लिया
तो राहों से फिर कैसा गिला
जिस नजर पर भरोसा था हमको
उस नजर ने जलील-ओ-ख़्वार किया
जिन बाहों में घर सोचा था
वो घर कच्ची मिट्टी का निकला ,
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
aa.Saurabh Pandey jee rachna aapke snehankit shabdon rachna dhany huee...aapka hr sujhaav mere liye amuly hai....aapkee is aatmeey sneh ka haardik aabyaar
भाई सुशीअजी, आपकी संवेदनापूरित इस कविता के लिए हार्दिक बधाई. आपने हृदय के दग्ध उद्गारों को शब्दबद्ध करने की कोशिश की है. इसके लिए हार्दिक बधाई.
बाकी, आप इस मंच पर बने रहें, रचनाकर्म से सम्बन्धित तथ्य स्वयं उप्लब्ध होते जायेंगे.
सादर
aa.Dr.Prachi Singh jee rachna par aapkee aatmeey prashansa ka haardik aabhaar
सांसारिकता में कभी साथ कभी विछोह, कभी विश्वास तो कभी धोखे के कारण अन्तःक्रंदन को शब्द देती प्रस्तुति..
शुभकामनाएं
aa.Arun Sharma Anant jee aapke sneh ka haardik aabhaar
आदरणीय सुशील सर बहुत ही सुन्दर रचना मुझे कहीं कहीं प्रवाह बाधित लगा खैर इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
aa.Giriraj Bhandaari jee rachna par aapkee snehil prashansa nka haardik aabhaar...aapke dwara ingit truti ko maine edit kr liya hai...jaldee baazee men ye ho gayee...aapkaa is truti pr dhyanakarshan ke liye hardik aabhaar-kripya sneh bnaaye rakhain
आदरणीय सुशील भाई , बहुत सुन्दर रचना की है , आपको अनेकों बधाइयाँ !!
जलील-ओ-खार -, शब्द शायद - जलील-ओ- ख़्वार - होगा एक बार देख लीजियेगा ॥ सादर ॥
aa.Savitamishra jee rachna par aapkee aatmeey pratikriya ka haardik aabhaar
aa.Avinash S Bagde jee rachna par aapkee madhur prashansa ka haardik aabhaar
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