"मौलिक व अप्रकाशित"
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आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आपकी सार्थक टिप्पणी ने मेरी रज-तुल्य रचनाओं को कनक-सम कर दिया है। मेरी अभिव्यक्तियों की कसमसाहट की धीमी आँच आपकी अँगुलियों को छू सकी; भाग्यशाली हूँ। सभी नवोद्भित रचनाओं को अपने शैशव से तरुणाई की प्रायः असमाप्य यात्रा में आप जैसे गुणी और अनुभवी अग्रजों की पारखी दृष्टि के प्रोत्साहन का अवलम्ब कहाँ मिल पाता है! मेरी रचनायें अनुग्रहीत हैं। सादर।
आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, आदरणीय CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी,
आपको मेरा प्रयास पसन्द आया; आभारी हूँ।
आप सबका रचना को पसन्द करना ही इसकी सार्थकता है। सादर धन्यवाद।
भाई अजयजी. बग़ावत के तज़ुर्बे से .. !!?
बढ़िया. !
सही कहिये, भाईजी, तो ओबीओ के मंच पर संभवतः आपकी कोई पहली रचना ही देख-पढ़ रहा हूँ. आपके रचना-सामर्थ्य के क्रोड़ में सतत पकती हुई कस्तुरी के मनहर सुवास से मुग्ध हुआ मैं अबतक अतिरेक में हूँ. उनमन.. उन्मन.. उन्मन.. !
हठात्.. ! इस प्रस्तुति की असह्य वाचालता ने उन नम्र-निवेदनों से सुलभ हुई भाव-दशा की अगाध शांति से झकझोर दिया है.
ख़ैर, रचना आपकी है. एक पाठक की हार्दिक शुभकामनाएँ संप्रेषित हैं.
शुभ-शुभ
शानदार अभिव्यक्ति आदरणीय अजय जी बहुत बहुत बधाई आपको
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति है। आपकी रचनाएं अपनी रवानी के लिए ही जानी जाती हैं। बहुत बधाई
शायद इसी को पीढ़ियों का गेप कहते हैं पर बेहतर है की बड़ों के तजुर्बे से सीख लो भले ही आपका पथ अलग हो किन्तु तजुर्बे बहुत काम आते हैं आपको सही गलत का फेंसला लेने में मदद करते हैं ....बढ़िया रचना बधाई आपको
अजय कुमार जी
आपकी रचना ने मन मुग्ध कर दिया i कोई शब्द-आडम्बर नहीं i अभिव्यक्ति में गति है , लय है और एक रवानी भी i विषय की गंभीरता को आपने शिद्दत से निभाया है i अतुकांत लिखनेवाले नए कवियों को आपसे सीखना चाहिए i आशिर्वाद i
पूरी रचना में आपने कहना क्या चाहा है भाई अजय कुमार जी.. . .....?
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