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रूबरू होता हूँ मैं उससे आजकल जब भी,
देखता हूँ उसे हैरत भरी निगाहों से,
उसके चेहरे पे घिरी रहती है एक मायूसी,
और निगाहों में कोई तल्ख़ सी उदासी भी,
उसकी मानो तो, हक़ीकत यही उदासी है,
और उसके लिये हर ख्वाब महज़ धोखा है,
मुझसे कहता है वो, कि "तुम भी बदल जाओगे,
तुमसे जब ज़िन्दगी के सच का सामना होगा।"
है वो वाक़िफ़ बग़ैर-शक़ बड़े तज़ुर्बों से,
और देखा है ज़माने को भी मुझसे ज्यादा,
उसने महसूस किये हैं तमाम दर्द-ओ-अलम,
और बेशक़ उसे ख़बर है हर हक़ीकत की;
मुझको  उसकी हक़ीकतों पे कोई शक़ भी नहीं,
और दावा भी नहीं वक़्त के तज़ुर्बे का,
उसकी बातें भी सब कि सब ज़रूर सच होंगी,
और होगी नहीं यूँ बेसबब उदासी भी।
मैं मग़र कैसे कहूँ- मैं भी एक इन्सां हूँ,
बेख़बर, बेअसर, बेजान कोई बुत तो नहीं,
देखता भी हूँ, और महसूस भी कर सकता हूँ,
और समझता भी हूँ मैं ज़िन्दगी जीने का सबक़।
फ़र्क़ ग़र है, तो फ़क़त ये है, कि उसकी राहें
सबके क़दमों के निशानों पे चला करती हैं;
मैं मग़र पूछता हूँ ख़ुद से ही अपनी मंज़िल,
और रखता हूँ हौसला भी नयी राहों का....

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by अजय कुमार सिंह on January 2, 2014 at 7:26pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आपकी सार्थक टिप्पणी ने मेरी रज-तुल्य रचनाओं को कनक-सम कर दिया है। मेरी अभिव्यक्तियों की कसमसाहट की धीमी आँच आपकी अँगुलियों को छू सकी; भाग्यशाली हूँ। सभी नवोद्भित रचनाओं को अपने शैशव से तरुणाई की प्रायः असमाप्य यात्रा में आप जैसे गुणी और अनुभवी अग्रजों की पारखी दृष्टि के प्रोत्साहन का अवलम्ब कहाँ मिल पाता है! मेरी रचनायें अनुग्रहीत हैं। सादर।

Comment by अजय कुमार सिंह on January 2, 2014 at 7:12pm

आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी,  आदरणीय CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी,

आपको मेरा प्रयास पसन्द आया; आभारी हूँ।

आप सबका रचना को पसन्द करना ही इसकी सार्थकता है। सादर धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 8:40pm

भाई अजयजी. बग़ावत के तज़ुर्बे से .. !!?
बढ़िया. !

सही कहिये, भाईजी, तो ओबीओ के मंच पर संभवतः आपकी कोई पहली रचना ही देख-पढ़ रहा हूँ. आपके रचना-सामर्थ्य के क्रोड़ में सतत पकती हुई कस्तुरी के मनहर सुवास से मुग्ध हुआ मैं अबतक अतिरेक में हूँ.  उनमन.. उन्मन.. उन्मन.. !

हठात्.. ! इस प्रस्तुति की असह्य वाचालता ने उन नम्र-निवेदनों से सुलभ हुई भाव-दशा की अगाध शांति से झकझोर दिया है.

ख़ैर, रचना आपकी है. एक पाठक की हार्दिक शुभकामनाएँ संप्रेषित हैं.
शुभ-शुभ

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 12:14pm

शानदार अभिव्यक्ति आदरणीय अजय जी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 21, 2013 at 7:13pm

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति है। आपकी रचनाएं अपनी रवानी के लिए ही जानी जाती हैं। बहुत बधाई

Comment by अजय कुमार सिंह on December 20, 2013 at 10:40pm
आदरणीया कुन्ती जी - कविता में निहित भाव के अनुसार - "कोई अन्य जो मुझसे ज्यादा अनुभव रखता है, मैंने उसका अनुसरण करने को नकार दिया क्योंकि मुझे स्वयं के हौसलों पर ज्यादा विश्वास है?" यद्यपि स्पष्ट रूप से कविता में सम्प्रेषण का अभाव है जिसके कारण कविता आप तक नहीं पहुँच सकी, तथापि मुझे विश्वास है कि इस स्पष्टीकरण से आपको कुछ सहायता मिलेगी। सादर।
Comment by अजय कुमार सिंह on December 20, 2013 at 10:26pm
कविता को पसन्द करने के लिए आप सभी गुनीजनों का आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2013 at 8:13pm

शायद इसी को पीढ़ियों का गेप कहते हैं पर बेहतर है की बड़ों के तजुर्बे से सीख लो भले ही आपका पथ अलग हो किन्तु तजुर्बे बहुत काम आते हैं आपको सही गलत का फेंसला लेने में मदद करते हैं ....बढ़िया रचना बधाई आपको 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2013 at 1:33pm

अजय  कुमार जी

आपकी रचना ने मन मुग्ध कर दिया i कोई शब्द-आडम्बर नहीं i अभिव्यक्ति में गति है , लय  है और एक रवानी भी i विषय की गंभीरता को आपने शिद्दत से निभाया है i अतुकांत लिखनेवाले नए कवियों को आपसे सीखना चाहिए i  आशिर्वाद i

Comment by coontee mukerji on December 20, 2013 at 1:32pm

पूरी रचना में आपने कहना क्या चाहा है भाई अजय कुमार जी.. . .....?             

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