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भाई अजय कुमार जी बहुत सुन्दर गीत रचा है आपने पसंद आया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
इस तरह का शब्द-चयन और कहन का ढंग आकर्षित करता है लेकिन भाई कहते समय थोड़ी सावधानी भी बरतने की जरूरत होती है.
बहुत सुंदर, सार्थक प्रयास के लिये बधाई बधाई
सिटी-कल्चर में पली-बढ़ी रुमानी भावनाओं को सार्थक शब्द देने का प्रयास हुआ है. बोगेनविलिया की जगह हरसिंगार का होना पृष्ठभूमि में कितना अंतर कर देता ?.. है न !
प्रस्तुत गीत में इस सायास प्रयोग के लिए पुनः बधाइयाँ.
अति सुंदर रचना , बहुत बधाई आपको आ0 अजय कुमार जी ।
आदरणीय श्याम जी, गणेश जी, मीना जी, डॉ प्राची जी, कुन्ती जी, गिरिराज जी ! नवगीत रचना की ओर यह मेरे प्रारम्भिक प्रयासों में से एक है. आप सबकी दृष्टि में यह रचना आयी, मैं इसी को इसकी सार्थकता समझता हूँ. आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. आदरणीया कुन्ती जी ने बिम्ब के जिस दोष की ओर इशारा किया है, मैं भी उससे अंशतः सहमत हूँ. साथ ही रचना की इतनी छोटी सी त्रुटि पर ध्यान देने के लिये और उसे सामने लाने के लिये आभारी हूँ. बिम्ब की यह विसंगति मेरे ध्यान में रचना करते हुये भी आयी थी, लेकिन यदि आप सूक्ष्मता से देखें, तो गीत की आत्मा ही प्रिय के मधुर सान्निध्य के रंग से चित्रित है. इस स्थिति में बोगेनविलिया जैसे शुष्क पुष्प में भी खुशबू का अनुभव गीत के मूलभाव से असंगत नहीं जान पड़ता है. इसीलिए मैंने जानबूझकर ही इस बिम्ब का प्रयोग किया है. आशा है, इस बिम्ब के साथ भी रचना स्वीकार्य होगी. -सादर
आदरणीय अजय भाई , लाजवाब गीत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
भीनी ख़ुशबू छूकर सारी
बातें खुलने वाली हैं...
बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ
शायद खिलने वाली हैं.......ध्यान रखने वाली बात बोगन वेलिया से खुशबू नहीं आती है.....किसी और फूल का नाम रखियेगा. आपकी यादें सार्थक हो जाएगी....बहुत ही सुंदर रचना है.
बहुत सुन्दर सरस मनमोहक नवगीत हुआ है
उस दिन कितनी कोशिश करके
हमने धूप बिछायी थी,
अल्फ़ाज़ों की कुछ शाखों से
कुछ पत्ते भी टूटे थे,
उन पर ठहरी खामोशी की
बूँदें झरने वाली हैं............................स्मृतियों को शब्द चित्र में कैद कर के स्वप्न बुनना..बहुत सुन्दर !
हार्दिक बधाई इस सुन्दर नवगीत पर
अलसाये नाज़ुक होठों की
हिलती डुलती टहनी पर,
कोहरे वाले मौसम में भी
पीली कलियाँ उगती हैं,
भीनी ख़ुशबू छूकर सारी
बातें खुलने वाली हैं...
बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ
शायद खिलने वाली हैं................ बहुत सुन्दर रचना .. बहुत बहुत बधाई आप को
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