स्त्री को आजादी वैदिक काल से ही मिली हुई है फर्क सिर्फ इतना है कि आज उस आजादी में कुछ निजी स्वार्थ समा गया है | वर्षों पहले से स्त्री को हर तरह की आजादी मिली हुई है अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनने की आजादी.अपने मन मुताबिक़ पति चुनने की आजादी,अपने मर्जी से शिक्षा क्षेत्र चुनने की आजादी यहाँ तक कि वो रण क्षेत्र में भी अपनी मर्जी से जाती थी | उन्हें कोई रोक-टोक नही थी इसके बावजूद वो अपनी पारिवारिक जिम्मदारियां भी बखूबी निभाती थीं और अपने पति के पीछे उनकी प्रेरणा बन के खड़ी रहती थी तो आज ऐसा क्यों नही ??
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आज पति का सहयोग करना पत्नी को गुलामी क्यों लगता है परिवार के प्रति स्नेह और समर्पण पहले जैसा कहाँ है ? आज मांग है अपने मर्जी से कपड़े चुनने की फिर चाहें वो कपड़े शालीन हों या ना हों | अपना कैरियर बनने की ललक में बच्चे नर्सरी में पल रहें हैं | आज की स्त्री किस बात की आजादी मांग रही है समझ नही आता | जो वो आज मांग रही है वो तो उसे वर्षों पहले से मिली हुई है फिर किस बात की मांग | अगर हमें बच्चों के सुनहरे भविष्य और पति की तरक्की के लिए अपने मन को अपनी खुद की अभिलाषाओं को थोड़ा मारना भी पड़े तो उसमे बुराई क्या है | हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ है फिर चाहें वो उसकी पत्नी हो या माँ |
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सावित्री जो मद्रदेश के राजा अश्वपति की पुत्री थीं | उन्हों ने अपनी इच्छा से सत्यवान को पति चुना था | पिता अश्वपति बहुत सा-धन,अलंकार दे रहें थे पर सावित्री ने कुछ भी लेने से मना कर दिया था | एक राज कन्या और विदुषी होते होते हुए भी जंगल में अपने पति और सास ससुर की सेवा करते हुए बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत किया और अपनी विद्वता के बल पर अपने पति के प्राण ही नही बल्कि अपने सास-असुर की आँखे और खोया हुआ राज्य भी धर्मराज से छीन कर ले आयीं थी |
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कैकेई ना होतीं तो देवासुर संग्राम में राजा दशरथ का बचना मुश्किल था बावजूद इसके दशरथ की दो रानियों के साथ उनका अगाघ स्नेह था | भले ही रामायण में कैकेयी को नकारात्मक चरित्र में दर्शाया गया हो पर राम को राम बनने वाली कैकेयी ही थीं |
पत्नी विदद्योत्मा की प्रेरणा से ही कालीदास महाकवि कालीदास बन सके |
तुलसी को गोस्वामी तुलसी दास बनने वाली उनकी पत्नी रत्नावली ही थीं कारण चाहें जो भी रहा हो |
समुद्र गुप्त का वाल्याकाल माता कुमार देवी जैसी उदार एवं कर्तव्यनिष्ठ महिला के संगरक्षण में व्यतीत हुया था |उसके पचास वर्षों के शासनकाल में ना तो कही अशांति हुई ना ही किसी ने साम्राज्य के विरूद्ध विद्रोह करने का साहस किया |
यहाँ जीजाबाई का उल्लेख करना हम नही भूल सकते जिन्होंने शिवाजी जैसा वीर सपूत देश को दिया |
पूरा इतिहास भरा पड़ा है इन असाधारण स्त्रियों से जिन्होंने अपने दायित्वों का निर्वाह कर के अपने पति या बेटे को बुलंदी के शिखर पर पहुंचाया जिन्होने समाज को एक नयी दिशा और ज्ञान दिया |
इन सभी स्त्रियों की त्याग और तपस्या से समाज को इतने विद्वान पुरुष मिले जिन्होंने समाज को एक राह दिखाया
पर आज हम स्त्रियां छोटी-छोटी बातों को ले कर अपने अधिकारों की मांग करने लगतीं हैं और यही छोटी-छोटी बातें अदालतों तक पहुँच जाती हैं परिणाम ये होता है कि परिवार टूट जाते हैं जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे बच्चों पर पड़ता है,उनके भविष्य पर पडता है | हमें कौन सी आजादी चाहिए पति पूरी तनख्वाह ला कर हमारे हाथ में रख देते हैं और अपना पॉकेट मनी भी वो हम से ही मांगते हैं फिर कौन सी पाबंदी है हम पर ? पति भी सारा दिन नौकरी में माथा पच्ची कर के आते हैं तो घर में रह कर स्त्रियाँ घर की जिम्मदारियाँ क्यों नही उठा सकतीं | पति-पत्नी परिवार रुपी गाड़ी के दो पहिये हैं जिनका संतुलित होना निहायत जरूरी है | एक का बैलेंस बिगड़ जाए तो पूरे परिवार का बैलेंस बिगड़ जाता है और इसे संभालने की पुरुष से ज्यादा जिम्मेदारी हम स्त्रीयों के कंधे पर ही होती है इसका मतलब ये कत्तई नही कि ये हमारी गुलामी है | स्त्रियां प्राचीन काल से ही हर क्षेत्र में आगे रही हैं और आज भी हैं, कमी सिर्फ ये आयी है कि आज की स्त्री अपनी छोटी-छोटी बातों को मनवाने के लिए ना जाने कौन-कौन से हथकंडे अपना रही हैं और झूठी आजादी के नाम पर अकेले जीवन यापन कर रहीं हैं |
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यहाँ पर एक बात और है, किसी-किसी घर में पुरुषों के अमानुषी व्यवहार से इतनी त्रस्त हैं स्त्रियाँ कि घुट-घुट कर जीवन जीने को मजबूर हैं सिर्फ अपने बच्चों के भविष्य के लिए, जब कि पहले ऐसा नही था | पुरुष घर की स्त्रियों को मान-सम्मान देते थे | अपने हर निर्णय उनसे सलाह मश्वरा कर के लेते थे पर आज ऐसा नही है पुरुष अपना हर निर्णय खुद लेता है पूरा घर उसके आदेश से चलता है चाहें उसकी बात किसी को अच्छी लगे ना लगे पर किसी को विरोध करने की हिम्मत नही होती |
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परिवार एक संस्था है जो समाज को स्वस्थ वातावरण देता है पर आज ये संस्था ही बीमार है तो समाज कहाँ से स्वस्थ होगा | पति-पत्नी के निजी स्वार्थ,उनके एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश और एक दूसरे से खुद को योग्य समझने की कोशिश की वजह से परिवार में तनाव व टूटन की स्थिति पैदा हो रही है जिसका सीधा असर बच्चों पर पड़ रहा है और आज के बच्चों से ही कल का समाज है | स्वस्थ परिवार से ही स्वस्थ समाज बनता है और समाज से स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण होता है इस लिए जरूरी है कि स्त्री अपनी शक्ति का सही उपयोग करे और स्त्री पुरुष दोनों ही अपने-अपने निजी स्वार्थ और अहम को छोड़ कर आने वाली नयी पीढ़ी को अच्छे संस्कारों से सिंचित करें जिससे फिर से देश को एक शशक्त नेतृत्व मिल सके जो ऐसे राष्ट्र का निर्माण करें जो भय मुक्त, लोभमुक्त हो, जो पदलोलुप ना हो |
*मीना पाठक*
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीया मीना जी
आपका लेख, लेख नहीं सुलेख है i वीमन लिब के प्रश्न पर आपने आधुनिक नारियो को जो फटकार लगाई है , वह काबिले तारीफ़ है i नारी का सम्मान भारत की प्राचीन संस्कृति है i यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता i यदि आज समाज का चरित्र गिरा है तो उसके दोषी मात्र पुरुष ही नहीं है पाश्चात्य का अनुकरण करती नारिया भी है i माँ को जितना सम्मान इस देश में दिता जता है उतना पाश्चात्य देशो में नहीं i अब यदि हम अपने ही संस्कार भुला बैठे तो इसमें समाज का क्या दोष i जहां सफाई होती है प्रायशः वहां थूकने से लोग परहेज करते ही है i समाज के दोनों वर्गों को बजाय एक दुसरे पर लाछन लगाने के अपने आच्घरण की स्वछता पर ध्यान देना चाहिउये i यदि हम ८०% स्वच्छ होंगे तो हमारी संताने ७५% स्वच्छ अवश्य होंगी i पर यह भी ध्यान में रखना चाहिए
की रावण और दुर्योधन भी हर युग में हुए है और होंगे i आदरणीया -- चक्षु प्रस्फुटन करने वाले आपके इस आलेख को प्रणाम i
आदरनीया मीना जी , सुन्दर , सार्थक और सामयिक लेख है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ बहुत ज़रूरी प्रश्न खड़ा किया है आपने ॥ मुझे लगता है हमारी संस्कृति को अब बचाने के लिये अब कार्य करना ज़रूरी हो गया है । जिसकी शुरूवात हर घर से होनी चाहिये । साजिशों के ज़रिय्रे हमारी संस्कृति को बरबाद किया जा रहा है । जिन महान नारियों का आपने उल्लेख किया है आज के युवा लड़्के और युवतियाँ से ज़रा कभी उनके विषय मे पूछ के देखिये , शायद ही कोई जानता मिले । आदर्र्शों की अब की छवियाँ ही बदली मिलेगी । किससे सीख रहे हैं क्या सीख रहे हैं अब कौन ध्यान दे रहा है ॥ स्कूल की किताबों मे अब बालीवुड के हीरो का चरित्र भी आने वाला है । क्या क्या कहूँ ? बस , अब अगर नही सम्हले तो गर्त सामने है ॥
आदरणीय सारथी जी बहुत बहुत आभार | सादर
आदरणीया सविता मिश्रा जी लेख को इतने ध्यान से पढ़ने और सराहने के लिए तहेदिल से आभार स्वीकारें | सादर
आदरणीय ब्रम्हचारी जी हार्दिक आभार स्वीकारें | सादर
आदरणीय श्याम नारायण जी सादर आभार स्वीकारें
क्या बात , शुरुआत ही अपने सारांश का पता बता रही है ! स्त्रियों के बारे में जो आपने विचार प्रस्तुत किये हैं ..काबिले गौर है ...बहुत बहुत बधाई :)
सवाल जो उठाया उसके कारण ..समाधान आपने खुद ही बता दिए ..अंत में सार भी ..बहुत खुबसूरत और सही ही लिखा हैं आपने ...आजाद होते हुए भी आजादी की मांग ...अपने अधिकारों का दुरुपयोग ...और लाचार स्त्री ..सभी अपनी इस लेख में दिख गयी
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ....... |
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