“दाग“
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मूर्खता है ,
होली में रंगे कपड़ों से
दाग छुड़ाने की कोशिश ।
कोई कहता भी नहीं उसे
दाग दार ।
वो अलग हैं , दागियों से
वो होली के हैं । बस ,
स्वीकार करें ,
वैसे ही ,
अगर मजबूरियाँ हैं , पहन भी लें ।
कोई न कहेगा , दागदार , कहेगा होली के ,
दाग दार कहा ही
तब जाता है
जब , सारा कुछ हो उजला
और
दाग हों एक –दो
इंगित भी किया जाता है इसे ही ,
प्रयास भी किया जा ता है
छुड़ाने का ,
रहती हैं अपेक्षाएँ भी
दाग छुड़ा लिये जाने की
ताकि , हो सकें आप ,
निर्मल , बेदाग ,पवित्र ॥
ये तो शुभ सूचक है ।
आनन्द का ,
खुशी का कारण है ।
मुझे प्राप्त हुआ , ये आनन्द
सौभाग्य से ,
कल भी , और पहले भी
बाटना चाहता हूँ मै , देना चाहता हूँ
उनको भी ,जो उदास हैं
कहता हूँ , इसीलिये
उनसे,
दो – एक दाग दिख रहे हैं
कपड़ों में आप के भी ॥
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अभिनव भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीया मीना जी , रचना की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥
कथ्य सुन्दर है, प्रस्तुति हल्की हो गई है, कथ्य और शिल्प दोनों में संतुलन बैठाना ही अतुकांत की सुन्दरता है, सब कुछ ठीक केवल तराशने की जरुरत है, किसी की बात याद आती है, उन्होंने कहा था कि मान लो कि एक एक शब्द की कीमत १-१ लाख है और आपको सस्ते में कविता करनी है।
बहरहाल बधाई इस प्रस्तुति पर, रचनाओं पर समय दें, पोस्ट करने में कोई जल्दबाजी नहीं।
दो – एक दाग दिख रहे हैं
कपड़ों में आप के भी ॥
...बड़ा ही करारा विमर्श प्रस्तुत किया आ श्री गिरिराज जी , सशक्त रचना , हार्दिक बधाई !!
बहुत सुन्दर ... लाजवाब रचना हेतु सादर बधाई आदरणीय गिरिराज जी | सादर
आदरणीय श्याम भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभार ॥
आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , रचना पर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥ सीखने का प्रयास ज़ारी है , आप लोगों के सानिध्य में , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ..... |
मित्र /अनुज
सारा वर्ष हम दाग छुड़ाने, नहीं नहीं--- छुपाने की मुहि म में रहते है i चकलो एक दिन तो ऐसा है जब हम दागदार रहते है और लजाते भी नहीं i आप नयी विधाओ में भी ख़ूबसूरती से ढल रहे है i मेरी शुभ कामनाये है i
आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना को स्वीकार करने और सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ
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