चितवन
1
सांझ की पड़ी चितवन कटारी
उतर आयी रात आंगन
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास
रात की रानी महके
हरसिंगार की झूमर लहके
तारों की बरात लिये
आया कोई पुच्छल तारा
देख सुहानी रात मतवाली
पैरों बाँध घुँघरू
बिरहनी संग यह कैसा परिहास
2
बहक रहा चाँद
लहरों पर थिरक रही चाँदनी
सागर तट पर नाच रहा पवन
बाँध के पैजन
चट्टानों के गृह सखी
चल रहा सम्मोहन
बिन पिया कैसे हो हिय उल्लास
3
दूर गगन से
कोई बाँसुरी पुकारे
हृदय का पट खोल
अंतर में मोह जगाए
कैसा यह उच्छवास
रूक जादूगर! सम्भल जरा
बिन पिया कैसे मनाऊँ मधुमास.
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
तीन दृश्य तीन निवेदन. बहुत खूब !
हार्दिक बधाई आदरणीया
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय कुंती जी
मधुमास ,परिहास और उल्लास प्रिय के बिन न मनाने की आकुल छटपटाहट का मर्मस्पर्शी चित्रण है i आपके बिम्ब बहुत सटीक और उभर कर आते है i आपकी सभी रचनाओ का स्तर एक आदर्श ऊँचाई पर रहता है , वहा तक पहुचने के लिए बड़ी ऊर्जा चाहिए i बशुत बहुत बधाई माननीया i
आपने अंतर की व्यथा को बहुत ही सुंदर शब्दों से संजोया, बधाई स्वीकारें आदरणीया कुंती जी
प्रिय मित्रगण आप लोगों मेरी रचना भायी.हार्दिक आभार वन वर्ष की शुभ कामनाएँ
बहुत ही मार्मिक रचना है आपकी आदरणीया कुंती जी, हार्दिक बधाई आपको
..सादर
सांझ की पड़ी चितवन कटारी
उतर आयी रात आंगन.......... बहुत ही सुंदर आदरणीया कुंती जी हार्दिक बधाई आपको ..सादर
हार्दिक बधाई आदरणीया कुंतीजी, तीनों में व्यथा है , सुंदर भाव है । अंतिम और भी सुंदर।
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