For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल
बहर-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ
.
कभी ख़ुद से रफ़ाक़त हो।
ज़रा शिकवा-शिकायत हो॥
.
ख़ुशी के साज़ खो जाएँ,
बड़ी बोझिल तबीयत हो।
.
अदाओं में हो बेअदबी,
निगाहों में हिक़ारत हो।
.
कसकती हों कहीं टीसें,
कहीं बेजा हरारत हो।
.
सरे-बाज़ार लुट जाएँ,
ज़रा ऐसी तिजारत हो।
.
दुआ के चार बोलों में,
अनुष्टुप हो न आयत हो।
.
डगर लंबी,सफ़र तन्हा,
यही अपनी विरासत हो।
.
ग़ज़ल में ढल सकें आँसू,
फ़क़त इतनी इनायत हो॥
.
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-24.12.2013

Views: 693

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on January 5, 2014 at 4:20pm
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया आदरणीय।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 4, 2014 at 8:12pm
दुआ के चार बोलो में।
अनुष्टुप हो न आयत हो।
वाह आदरणीय भाई रवि प्रकाश जी! वाह!
एक बेहतरीन गजल के लिये बधाई।
Comment by Ravi Prakash on January 3, 2014 at 1:30pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आ॰ सौरभ जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 3, 2014 at 2:37am

ग़ज़ल पर हुआ प्रयास मनोहारी है.

दुआ के चार बोलों में,
अनुष्टुप हो न आयत हो.. इस शेर के ग़िर्द बुनी गयी ग़ज़ल भली लगी, रवि भाईजी.

हार्दिक बधाई.

Comment by Ravi Prakash on December 30, 2013 at 4:42pm
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया कुंती जी।
Comment by coontee mukerji on December 29, 2013 at 10:54pm

दुआ के चार बोलों में,
अनुष्टुप हो न आयत हो।.....क्या बात है.
.

Comment by Ravi Prakash on December 28, 2013 at 7:43pm
आ॰ गीत जी, आपको रचना अच्छी लगी, जान कर मन को आनंद प्राप्त हुआ। स्नेह बनाए रखें।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 28, 2013 at 9:01am

सरे-बाज़ार लुट जाएँ,
ज़रा ऐसी तिजारत हो|
.
डगर लंबी,सफ़र तन्हा,
यही अपनी विरासत हो।

बहुत शानदार गजल कही आपने आदरणीय रवि जी, यह शेर बहुत पसंद आये बधाई आपको

Comment by Ravi Prakash on December 27, 2013 at 11:03pm
धन्यवाद महिमा जी.. बधाई प्राप्त की गई है।
Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2013 at 7:45pm

दुआ के चार बोलों में,
अनुष्टुप हो न आयत हो।... वाह बहुत बढ़िया आ. रवि प्रकाश जी बधाई प्रेषित है ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
11 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service