नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव
आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव
धधक रही भठ्ठी में
महुवा महक रहा है
धनिया की हंसुली पर
सुनरा लहक रहा है
कारतूस की गंध
अभी तक नथुनों में है
रोजगार गारंटी अब तक
सपनों में है
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती
या, फिर हो डुमरांव
कब तक पानी पर तैरायें
काग़ज़ वाली नांव !
माहू से सरसों, गेहूं को
चलो बचाएं जी
नील गाय अरहर की बाली
क्यों चर जाएं जी
ठंडी रात में बूढ़ा-माई
बडबड नहीं करें
हम अपने हिस्से का सूरज
खुद ही चलो गढ़ें
धूप कड़ी हो तो दे जाएं
थोड़ी थोड़ी छाँव
ठंडी ठंडी पुरवाई से
बेहतर है पछियांव.. .
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मौलिक एवं अप्राकाशित
Comment
आदरणीया महिमा जी गीत पसंद करने के लिए हार्दिक शुक्रिया
आदरणीया अन्नपूर्णा जी गीत को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय गिरिराज जी गीत की आत्मा तक जाकर प्रतिक्रया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
आदरणीया कल्पना जी आप जैसा नवगीत का हस्ताक्षर अगर तारीफ करता है तो ख़ुशी मिलती है| हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय अजीत शर्मा जी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया
भाई चन्द्र शेखर पाण्डेय जी प्रतिक्रया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय S. C. Brahmachari जी गीत के भाव पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद
आदरणीया कुंती जी आपने गीत को समय और आशीर्वाद दिया यही इसकी सफलता है| नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
आदरणीय जितेन्द्र जी गीत आपको रुचा जानकर अच्छा लगा| आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
आदरणीय अजय शर्मा जी गीत आपको पसंद आया जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई| आपके जिले को तो प्रतीक के रूप मात्र लिया है ..यह तो हर जिले का ही हाल है| हार्दिक धन्यवाद
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