For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूखे पत्तों के ढेर में

उम्मीद का

एक अंकुर फूटा

 

सूखे पत्ते मानो,

लाशें हैं

लाश हारे हुये लोगों की

लाश,

पराधीनता को किस्मत समझ

डर-डर के जीने वालों की

 

वो अंकुर है

भाग्योदय का

कीचड़ में उतर

परजीवियों को

साफ कर

समाज से

बीमारी हटाने वालों का

जो एक ज़र्रा था कल तक

आज

ज़माना उसकी चमक देख रहा है

 

अपनी नन्हीं आँखें खोल

मानो, कह रहा है

उठो

खुद को पहचानो,

खुद को बदलो,

आओ, नये युग की शुरुआत लिखें

 

 -मौलिक व अप्रकाशित

Views: 876

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2014 at 7:56pm

आदरणीय लड़ीवाला सर रचना को सराहने के लिये आपका आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2014 at 7:55pm

आदरणीया डॉ. प्राची जी रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2014 at 7:54pm

आदरणीय अखिलेश सर आपका आभार 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 1, 2014 at 5:57pm

आओ नव युग की शुरुआत करे - सुन्दर रचना के लिए बधाई और साथ ही वर्ष २०१४ का हर दिन आपके लिए शुभ हो यही मंगल कामनाए है 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 1, 2014 at 5:46pm

जो एक ज़र्रा था कल तक

आज

ज़माना उसकी चमक देख रहा है

अपनी नन्हीं आँखें खोल

मानो, कह रहा है

उठो

खुद को पहचानो,

खुद को बदलो,

आओ, नये युग की शुरुआत लिखें....वाह !

बहुत खूबसूरत कविता आ० शिज्जू जी .बहुत बहुत बधाई 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 1, 2014 at 12:56pm

आदरणीय  शिज्जू भाई, नव वर्ष की शुभ कामनाओं के साथ आपको इस सुंदर गीत की भी हार्दिक बधाई॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 1, 2014 at 10:32am

आदरणीय विजय सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by vijay nikore on January 1, 2014 at 10:27am

अति सुन्दर भाव। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 31, 2013 at 11:25pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया नादिर भाई

Comment by नादिर ख़ान on December 31, 2013 at 10:54pm

नन्हीं आँखें खोल

मानो, कह रहा है

उठो

खुद को पहचानो,

खुद को बदलो,

आओ, नये युग की शुरुआत लिखें

वाह शिज्जु जी क्या बात है, आपकी रचनाओं का जवाब नहीं बहुत खूब ......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service