आकर्षण – विकर्षण
चुम्बक मे ही नहीं होता
भाव भी खींचते हैं , दूर कर देते हैं
भावों को ।
बस , नियम उलटा है
चुम्बक से ।
एक ही भावों होता है खिचाव ,
भाव अलग हों तो दुराव ।
और फिर ,
बन जाता है / बन जायेगा
एक समूह,
समान भाव वालों का , और तब
पोषित ,पुष्पित होगा
वही भाव ,और अधिक ,
गहन होगा , विस्तारित होगा
बहेगा एक से दूसरे में ,
आच्छादित हो जायेगा
आपके आस पास का ,सब कुछ ,
उसी भाव से ।
फिर , जियेंगे ,मरेंगे भी
उसी भाव के लिये ।
सारा जीवन क्रम घूमने लगेगा
इर्द गिर्द ,उसी भाव के ।
आप माने न माने
यही सच है ,
यही हो रहा है , सदा से
यही होगा , आगे भी
ऐसे में भावों का अशुभ होना कितना सही है ?
चलो सोचें ॥
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मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , रचना को मान देने के लिये आपका हार्दिक आभार ॥ सीखने के क्रम मे आपकी सलाह और सहायता की हमेशा ज़रूरत रहेगी , ऐसे ही स्नेह बनाये रखें ॥
वैचारिक कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई आदरणीय.
आदरणीया प्राचीजी के कहे से मैं पूरी तरह संतूष्ट नहीं हो पाया. क्योंकि वैचारिक संप्रेषणों के लिए गेयता बन्धन है. विचारों को सान्द्र होने दें. वैसे यह मेरी व्यक्तिगत सोच है.
सादर
आदरणीय विन्ध्येश्वरी भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय गिरिराज सर रचना का भाव बहुत ही उम्दा है बहुत पसंद आया इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीय भाई गिरिराज जी बहुत अच्छी भावाभिव्यक्ति है इस रचना के लिये हार्दिक बधाई स्वीकार करें. साथ ही नववर्ष की शुभकामनाएं भी .
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